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Home ›   Blogs Hindi ›   Ganga Dussehra 2022: Know the auspicious time and importance of Ganga Dussehra

Ganga Dussehra 2022: जानिए गंगा दशहरा का शुभ मुहूर्त और महत्व

Myjyotish Expert Updated 06 Jun 2022 04:06 PM IST
जानिए गंगा दशहरा का शुभ मुहूर्त और महत्व
जानिए गंगा दशहरा का शुभ मुहूर्त और महत्व - फोटो : google
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जानिए गंगा दशहरा का शुभ मुहूर्त और महत्व


गंगा दशहरा ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को पड़ता है. राजा भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा आज के दिन भगीरथ के पूर्वजों की शापित आत्माओं को शुद्ध करने के लिए धरती पर इसी दिन अवतरित हुईं थीं. गंगा दशहरा पृथ्वी पर गंगा नदी के आगमन को लेकर मनाया जाता है. पृथ्वी पर अवतरण से पूर्व गंगा ब्रह्मा जी के पास विराजमान थीं. इसलिए, उसके पास स्वर्ग की पवित्रता है. पृथ्वी पर अवतरण के बाद स्वर्ग की पवित्रता उसके साथ आई. गंगा दशहरा उस दिन की याद में मनाया जाता है जब देवी गंगा पृथ्वी पर आई थी. आमतौर पर यह त्योहार निर्जला एकादशी से एक दिन पहले मनाया जाता है.

गंगा दशहरा पर क्यों हैं इस बार तिथि मतभेद  

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा के रुप में मनाया जाता है. इस वर्ष गंगा दशहरा की तारीख को लेकर पंचांग भेद भी मौजूद है. कुछ पंचांग के अनुसार ये पर्व 9 जून को और कुछ पंचांग में 10 जून को बताया गया है. दशमी तिथि पर गंगा दशहरा मनाय जाता है, ऎसे में 9 जून को प्रात: 08:22 पर दशमी तिथि आरंभ होगी ओर 10 जून 07:27 तक दशमी तिथि का समापन होगा. इस कारन से अलग अलग मतोम के अनुरुप गंगा दशहरा कि तिथि को बताया जा रहा है. 

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गंगा से जुड़ी महाभारत की कथा 

पौराणिक काल अनुसार इस दिन के शुभ अवसर पर ही देव नदी गंगा पृथ्वी पर अवतारित हुई थीं. महाभारत में गंगा नदी के संबंध में कथा भी वर्णित है जिसके अनुसार राजा शांतनु को देवी गंगा से प्रेम हो गया था. शांतनु ने गंगा से विवाह करने की बात कही तो गंगा विवाह के लिए मान गईं, लेकिन गंगा ने राजा के सामने एक शर्त रखी थी की वह अपनी इच्छा अनुसार ही रहेंगी उनके जीवन में किसी भी तरह की रोक-टोक नहीं होगी. अगर राजा कभी किसी काम में गंगा को टोकते हैं या कोई प्रश्न पूछेंगे तो वह उन्हें छोडकर चली जाएंगी. शांतनु ने देवी गंगा की ये बात मान ली और उनका विवाह हो गया. विवाह के बाद जब भी देवी गंगा किसी संतान को जन्म देती हैं तो तुरंत ही नदी में बहा देती हैं. शांतनु अपने वचन की वजह से गंगा को रोक नहीं पा रहे थे. राजा शांतनु गंगा को खोना नहीं चाहते थे.

गंगा नदी ने एक के बाद एक सात संतानों को नदी में बहा दिया, लेकिन शांतनु ने कुछ नहीं कहा. इसके बाद जब आठवीं संतान हुई तो गंगा उस संतान को भी नदी में जाने जाने लगी पर अब राजा शांतनु खुद को रोक नहीं पाए और उन्होनें गंगा को रोक कर पुछ लिया की वह हर बार अपनी संतानों को नदी में क्यों बहा रही हैं. गंगा ने कहा की आज आपने मेरे वचन को तोड दिया है. अब ये संतान आपके पास रहेगी और मैं आपको छोडकर जा रही हूं. इस तरह शांतनु ने गंगा को खो दिया और अपने संतान को बचा लिया. उन्होंने पुत्र का नाम देवव्रत रखा था, यही पुत्र बाद में भीष्म पितामह के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
 

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