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जानिए दुर्वा के उपाय से कैसे होगा लाभ, दूर होंगे सभी दुःख

my jyotish expert Updated 19 Sep 2021 11:17 AM IST
ganesh and durva significance
ganesh and durva significance - फोटो : google photo
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हिंदू धर्म में दुर्वा को पूजा के लिए प्रयोग किया जाता है।
इसे अनेकों नाम से जानते है जैसे दूब, अमृता, अनंता इत्यादि। हिंदू धर्म में दुर्वा मांगलिक कार्यों में भी इस्तेमाल करते है जैसे शादी विवाह में वर या वधू को हल्दी चढ़ाने के लिए दुर्वा का इस्तेमाल करते है। प्रथम पूजनीय भगवान गणपति को दुर्वा अवश्य अर्पित करते है।माना जाता है कि भगवान गणपति को दुर्वा चढ़ाने से भक्तो के सारे दुख दूर हो जाते है और भगवान गणेश भक्तो की मनचाही मनोकामना पूर्ण करते है। दुर्वा चढ़ाने के और बहुत सारे लाभ है। तो चलिए जानते है दुर्वा को अर्पित करने के लाभ और नियम।

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दुर्वा के उत्पति से जुड़ी कथा  

पृथ्वी पर पाई जाने वाली दूर्वा के बारे में कई प्रकार की कथा सुनने को मिलती है। एक कथा के अनुसार मंगलकारी दूर्वा का प्रादुर्भाव समुद्र मंथन के समय तब हुआ था जब देवतागण अमृत को राक्षसों से बचाने के लिए लेकर जा रहे थे और उस अमृत कलश से कुछ बूंदे पृथ्वी पर उगी हुई दूर्वा पर गिर गईं, जिसके बाद से वह अजर अमर हो गई। बार-बार उखाड़े जाने के बाद भी वह खत्म नहीं होती है और दोबारा उग आती है. वहीं दूसरी कथा भी समुद्र मंथन से ही जुड़ी हुई है. मान्यता है कि समुद्र मन्थन के दौरान जब भगवान विष्णु कूर्म अवतार धारण करके मन्दराचल पर्वत की धुरी में विराजमान हो गये तो मन्दराचल पर्वत के तेज गति से घूमने से जो रगड़ हुई उससे भगवान विष्णु की जंघा से कुछ रोम निकलकर समुद्र में गिर गये. इसके बाद भगवान विष्णु के यही रोम पृथ्वीलोक पर दूर्वा घास के रूप में उत्पन्न हुये।

गणपति को दुर्वा चढ़ाने का फल 

माना जाता है कि जो व्यक्ति भगवान गणेश की पूजा दुर्वा अर्पित करके करता है,उसकी सभी मनोकामना भगवान गणेश पूर्ण करते है। कहा गया है कि जो व्यक्ति गाजानन की पूजा में दुर्वा का प्रयोग करता है।उसे कुबेर के समान धन की प्राप्ति होती है। ऐसे लोगो को सारी परेशानियां ,कष्ट दूर हो जाते है। 
गणेश चतुर्थी या फिर बुधवार के दिन गणपति को ‘श्री गणेशाय नमः दूर्वांकुरान् समर्पयामि’ मंत्र के साथ 21 दूर्वा की गांठ को चढ़ाने से गणपति की शीघ्र ही कृपा प्राप्त होती है. गणपति की साधना का यह अत्यंत ही चमत्कारी उपाय है. ऐसे में जीवन को मंगलमय बनाने के लिए गणपति की पूजा में हमेशा दूर्वा का प्रयोग करना चाहिए.

गणपति को दुर्वा चढ़ाने के कुछ कहां नियम 

माना जाता है कि किसी भी कार्य को नियम और श्रद्धा से करने से उसका अच्छा परिणाम मिलता है।दुर्वा को नियम से चढ़ाने का अपना एक अलग ही लाभ है 
गणपति को अर्पित की जाने वाली दूर्वा कोमल होनी चाहिए। ऐसी दूर्वा को बालतृणम् कहते हैं। सूख जाने पर यह आम घास जैसी हो जाती है। दूर्वा की पत्तियां विषम संख्या में (जैसे 3, 5, 7) अर्पित करनी चाहिए। पूर्वकाल में गणपति की मूर्ति की ऊंचाई लगभग एक मीटर होती थी, इसलिए समिधा की लंबाई जितनी लंबी दूर्वा अर्पण करते थे। मूर्ति यदि समिधा जितनी लंबी हो, तो लघु आकार की दूर्वा अर्पण करें, परंतु मूर्ति बहुत बड़ी हो, तो समिधा के आकार की ही दूर्वा चढ़ाएं। जैसे समिधा एकत्र बांधते हैं, उसी प्रकार दूर्वा को भी बांधते हैं। ऐसे बांधने से उनकी सुगंध अधिक समय टिकी रहती है। उसे अधिक समय ताजा रखने के लिए पानी में भिगोकर चढ़ाते हैं। इन दोनों कारणों से गणपति के पवित्रक बहुत समय तक मूर्ति में रहते हैं। 
गणपति को दुर्वा हल्दी या लाला रोड़ी या सिंदूर के साथ भी चढ़ाते है जो लाभप्रद भी होता है।



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