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जानिए क्यों चतुर्थी का व्रत मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला होता हैं
हर साल के हर माह में गणेश चतुर्थी दो बार आता है।इस साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तीन जून शुक्रवार को पड़ा है।कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकटी चतुथी और वही दूसरे शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते है।गणपति का शुभ दिन बुधवार माना गया है। उस दिन गणेश जी का पूरे श्रद्धा भाव से पूजा पाठ करें।हरा चीज जैसे मूंग दान करें।
इनकी पूजा अर्चना करने से घर में खुशहाली बनी रहती हैं।और इनका बाल रूप अत्यंत मनमोहक है। ऐसी मान्यता है की इसकी पूजा करने से होने वाले बच्चे बाल गणेश जैसे ही होते है। इनकी पूजा करने से धन की भी कमी नहीं होती हैं। श्री गणेश को विघ्न विनाशक कहा जाता हैं।
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जानिए क्यों मनोकमना को पूर्ण करने वाला व्रत हैं विनायक चतुर्थी
गणेश जी का व्रत कथा सबसे पहले पुराणों में बताया गया हैं , की ये व्रत सबसे पहले चंद्र देव ने किया। एक बार श्री गणेश यात्रा कर रहे थे उसी दौरान चंद्र देव उनसे मिले।कही न कही चंद्र देव को अपने सुंदरता पर बहुत ही ज्यादा घमंड था। वो गणेश का ऐसा रूप देख कर हस दिए चंद्र देव की इस कुटिल मुस्कान पर गणेश जी को क्रोध आया और चंद्र देव को श्रापित कर दिए की आप कुरूप हो जाओगे। चंद्र देव ने भगवान गणेश से माफी मांगी और कहा अब ऐसा नहीं होगा प्रभु मुझे माफ कर दो। विनायक ने चंद्र देव को माफ कर दिया। और उसको गणेश चतुर्थी व्रत कथा के बारे में बताया। और बोलें की चंद्र देव तुम इस व्रत को पूरे सच्चे मन से करना। उस दिन तुम उपवास भी रखना।तो तुम श्राप से मुक्त हो जाओगे।
पौराणिक कथाओं में बताया गया है की एक बार मां पार्वती ने शिव जी से चौपड़ खेलने के लिए कहा। उस समय ये नर्मदा नदी के तट पर बैठे थे। दोनों (शिव जी) ने खेल शुरू होने से पहले सोचा की हमारे खेल में हारा कौन और जीता कौन ये कौन बताएगा। तो शिव जी कुछ तिनका निकाल कर उस में जान डाल दिया और वह एक बालक का रूप ले लिया। तो शिव जी ने उसे खेल का निर्णय करने को कहा।
शिव पार्वती जी में चौपड़ का खेल शुरू हुआ। तीन बार खेल में ही हर बात माता ही जीतती थी। शिव जी नहीं।फिर भी उस बालक ने माता पार्वती को नहीं शिव जी को विजयी बताया। माता को क्रोध आया और उसको श्राप दे दिया की तुम एक पैर से लंगड़े हो जाओगे और हमेशा कीचड़ में ही रहोगे। वह बालक रोने लगा और कहा मां मुझे क्षमा कर दो। मैंने अज्ञानवश कर दिया है।मुझे क्षमा कर दो मां।
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तब माता ने कहा की यहा पर गणेश पूजा के लिए नाग कन्याए आएंगी। तुम उनसे गणेश पूजा की विधि पूछ लेना और वैसे ही सच्चे मन से करना तो तुमको श्राप से मुक्ति मिलेगी। ठीक एक वर्ष के बाद वहा पर नाग कन्याएं आई। तो बालक ने गणेश जी के व्रत के बारे में पूछा।उन्होंने बालक को 21गणेश चतुर्थी का व्रत करने को बताया। बालक ने पूरे सच्चे मन से व्रत को रखा। भगवान गणेश प्रसन्न होकर उसे मनवांछित वर मानने को कहा।
बालक ने कहा के हे देव आप मुझे ये फल दीजिए की मैं अपने पैर से चल कर कैलाश पर्वत जाउ। गणेश जी ने तथा वस्तु कह कर अंतर्ध्यान हो गए। बालक कैलाश पहुंचा और शिव पार्वती जी को अपनी कथा बताई। इस तरह से बालक को श्राप से मुक्ति मिली। तब माता को अपने बड़े पुत्र कार्तिके से मिले का मन हुआ । उन्होंने ने 21 चतुर्थी का व्रत रखा और इस व्रत के प्रभाव से कार्तिके जी माता से मिलने कैलाश पर्वत आए।