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खरना पर, विशेष रूप से बिहार के लोग गुड़ की खीर, कड्डू-भात, और ठेकुआ-लाजिया जैसे व्यंजन बनाते हैं। 8-12 घंटे का उपवास पूरा करने के बाद, वे अपने परिवार के साथ इन व्यंजनों का आनंद लेते हैं। लोग नए कपड़े भी पहनते है और अपने दोस्तों और परिवार के साथ शुभ मौकों का जश्न मनाते है।
लोहंडा और खरना अनुष्ठान
छठ पूजा त्यौहार के दूसरे दिन उपवास शुरू होता है। इस दिन, लोग उपवास रखते हैं और शाम को सूर्य को प्रार्थना करने के बाद भोजन करते हैं। सूर्य पूजा करने के बाद भक्त प्रसाद का सेवन करते हैं जिसमें रसिया-खीर, पूरियां और फल शामिल होते हैं। पूजा के बाद केले के पत्ते पर सभी के बीच प्रसाद वितरित किया जाता है।
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व्रत रखने वाली महिलाएं पहले छठ मैया को प्रसाद देती हैं और फिर उसका सेवन करती हैं। इस पवित्र भोजन का सेवन करने के बाद, व्रती (जो उपवास रखते हैं) अगले 36 से 40 घंटों तक कुछ भी नहीं खाती हैं जब तक कि वे उगते सूरज को जल नहीं चढ़ाती।
सूर्य उपासना का यह लोकपर्व छठ पर्व 4 दिनों तक मनाया जाता है। जिसकी शुरूआत नहाय-खाए से होती है। अगले दिन खरना किया जाता है। खरना का मतलब होता है शुद्धिकरण। दरअसल, छठ का व्रत करने वाले व्रती नहाय खाए के दिन पूरा दिन उपवास रखकर केवल एक ही समय भोजन करके अपने शरीर से लेकर मन तक को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं। जिसकी पूर्णता अगले दिन होती है। यही वजह है कि इसे खरना के नाम से बुलाया जाता है। इस दिन व्रती साफ मन से अपने कुलदेवता और छठ मैय्या की पूजा करके उन्हें गुड़ से बनी खीर का प्रसाद चढ़ाती हैं। आज के दिन शाम होने पर गन्ने का जूस या गुड़ के चावल या गुड़ की खीर का प्रसाद बना कर बांटा जाता है। प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।
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