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Home ›   Blogs Hindi ›   Chandra Grahan Significance: Why it seems to be a legend associated with the lunar eclipse

Chandra Grahan Significance: क्यों लगता है चंद्र ग्रहण पढ़े इससे जुड़ी पौराणिक कथा

MyJyotish Expert Updated 14 May 2022 11:45 AM IST
Chandra Grahan Significance: क्यों लगता है चंद्र ग्रहण पढ़े इससे जुड़ी पौराणिक कथा
Chandra Grahan Significance: क्यों लगता है चंद्र ग्रहण पढ़े इससे जुड़ी पौराणिक कथा - फोटो : google
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क्यों लगता है चंद्र ग्रहण पढ़े इससे जुड़ी पौराणिक कथा


वर्ष का पहला चंद्रग्रहण 16 मई को लगने वाला है। यह चंद्रग्रहण वैशाख पूर्णिमा और बुद्ध पूर्णिमा के दिन लगेगा। यह खग्रास अर्थात पूर्ण चन्द्रग्रहण है। धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टिकोणों से ग्रहण एक महत्वपूर्ण घटना है। विज्ञान के अनुसार जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में आ जाते हैं तो चंद्रमा को पृथ्वी की छाया पूरी तरह से ढक लेती है। ऐसे में पूर्ण चंद्रग्रहण लगता है वहीं जब पृथ्वी की छाया चंद्रमा के कुछ भाग को ढकती हैं तो आंशिक चंद्रग्रहण लगता है। विज्ञान के अनुसार इस दौरान चंद्रमा लाल दिखाई पड़ता है। दूसरे शब्दों में कहें तो जब सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है तब चंद्रमा पर प्रकाश पढ़ना बंद हो जाता है जिसे चंद्र ग्रहण कहते हैं।

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धार्मिक दृष्टिकोण से यह एक बहुत ही अशुभ घटना मानी जाती है इसलिए इस दौरान किसी भी प्रकार का शुभ कार्य नहीं किया जाता है और पूजा पाठ भी नहीं की जाती है। ग्रहण के दौरान निकलने वाली किरणें बहुत ही हानिकारक होती है इसलिए हिंदू धर्मग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि ग्रहण के दौरान व्यक्ति को बाहर नहीं निकलना चाहिए और नंगी आँखों से ग्रहण नहीं देखना चाहिए क्योंकि इससे आँखों की रौशनी भी जा सकती है। आज हम आपको वह पौराणिक कथा बताएंगे जिसमे ग्रहण लगने का कारण छिपा है। आइये जानते हैं क्या है वह पौराणिक कथा

पौराणिक कथा में उल्लेख मिलता है कि जब समुद्र मंथन के दौरान अमृत निकला था तो अमृतपान के लिए देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ था कि अमृत पान कौन करेगा। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण करके देवताओं और असुरों को अमृत पान कराने के लिए अलग अलग पंक्ति में बैठा दिया था। भगवान विष्णु ने असुरों से बचाकर देवताओं को अमृतपान करा दिया था परंतु राहु नामक राक्षस देवताओं की पंक्ति में जाकर बैठ गया था और उसने अमृत पान कर लिया था।

जब चंद्रमा और सूर्य ने राहु को अमृतपान करते हुए देखा तो उन्होंने यह बात भगवान विष्णु को बता दी थी। जब भगवान विष्णु को यह बात पता चली तो उन्हें क्रोध आ गया और उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से राहु पर वार कर दिया था। परन्तु राहु अमृत पान कर चुका था जिसके कारण सुदर्शन के वार का असर उस पर नहीं हुआ और वह फिर से जीवित हो गया तब भगवान विष्णु ने राहु के दो टुकड़े कर दिए उसका एक हिस्सा शरीर का ऊपरी भाग राहु कहलाया और बाकी का आधा हिस्सा केतु कहलाता है।

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सूर्य और चंद्रमा ने ही भगवान विष्णु को जाकर बताया था कि राहु ने अमृत पान कर लिया है और उन दोनों के बताने के कारण ही उसकी ये दुर्दशा हुई थी। इसलिए वह चंद्रमा और सूर्य को अपना शत्रु मानता है। कहते हैं कि इसी शत्रुता के कारण हर पूर्णिमा के दिन राहु-केतु चन्द्रमा को घेर लेते हैं और उसकी रौशनी रोक देते हैं। वहीं अमावस्या के दिन यह सूर्य की रौशनी रोकते हैं। जब वह इसमें सफल हो जाते है तो चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण लगता है। इसी कारण के चलते ग्रहण को धार्मिक दृष्टिकोण से शुभ नहीं माना जाता है। कहते हैं की जब ग्रहण लगता है तो देवता संकट में होते हैं इसलिए ग्रहण के दौरान देवी देवताओं की पूजा की मनाही होती है।
 

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