जीवन के संकटों से बचने हेतु जाने अपने ग्रहों की चाल, देखें जन्म कुंडली
क्या बताई जाती है पौराणिक कथा :
कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण की द्वारिका नगरी में रहने वाले निवासी सत्राजित यादव जी ने सूर्य नारायण की उपासना कर उनसे स्यमनतक नामक मणि को प्राप्त किया था और ऐसा बताया जाता है कि ये मणि पूरे दिन में ही लगभग - लगभग 8 बार सोना देने में सक्षम मानी जाती थीं । फिर सत्राजित जी ने ये फैसला किया कि वो इस मणि को लेकर भगवान श्री कृष्ण के दरबार में जाएंगे । इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने इस मणि को राजकोष में जमा करने का आदेश दिया ताकि कोई भी व्यक्ति इस मणिका दुरुपयोग नहीं कर सके ।
किंतु सत्राजित जी ने उन्हें इस मणि को राजकोष में जमा करने से इंकार कर दिया था और इस मणि की हिफाजत के लिए उन्होंने अपने भाई प्रसेनजीत को चुनने का निर्णय लिया । आगे चलकर कुछ ऐसा हुआ कि प्रसेनजीत जी को एक शेर ने मार डाला और उस शेर ने उस मणि को चुरा लिया । इसके बाद रीछों के राजा जामवंत जी ने उस शेर को मार कर उस मणि को हासिल कर लिया और उसे अपने महल की गुफा में छुपा दिया ।
जब प्रसेनजीत जी के वापस नहीं लौटने का सत्राजित को खयाल आया और और बाद में उन्होंने भगवान श्री कृष्ण के ऊपर मणि को चुराने और साथ ही साथ उनके भाई प्रसेनजीत जी को मारने का आरोप उन पर लगाया । कहा जाता है कि जिस दिन भगवान श्री कृष्ण के ऊपर ये आरोप लगा था , उस दिन श्री गणेश चतुर्थी थी और उन्होंने भूलवश ही चंद्रमा के दर्शन कर लिए थे ।
इस आरोप से मुक्ति पाने के लिए नारद जी ने भगवान श्रीकृष्ण को चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश की पूजा व्रत करने का सुझाव बताया इसके बाद ही भगवान श्री कृष्ण ने वन में जाकर प्रसेनजीत जी को ढूंढना शुरू कर दिया वहां उन्होंने जामवंत की पुत्री जामवती के पास उस मणि को देखा और इस मणि की मांग की । लेकिन जामवंती ने इस मनी को देने से भगवान श्री कृष्ण को इनकार कर दिया था ।
तब भगवान श्री कृष्ण और जामवंत के बीच 21 दिनों का घमासान युद्ध हुआ था । जब जामवंत ने भगवान श्री कृष्ण को पराजित नहीं किया तो उन्हें ये एहसास हो गया कि भगवान श्री कृष्ण भगवान का साक्षात अवतार है । इसके बाद से उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से क्षमा याचना की और अपनी पुत्री जामवंती का विवाह उनके साथ तय करने का निर्णय लिया और साथ ही साथ मणि को नहीं देने का फैसला भी बदल दिया । जब भगवान श्री कृष्ण मणि को वापस लेकर लौटे थे तो सत्राजित को बहुत लज्जा हुई और उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से क्षमा मांगी और अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह भगवान श्री कृष्ण के साथ करवाने का निर्णय लिया ।
क्या है भूलवश से चंद्र दर्शन करने का उपाय :
मान्यता बताई जाती है कि गणेश चतुर्थी के दिन अगर व्यक्ति से भूलवश भी चंद्रमा के दर्शन हो जाए तो उसे झूठे आरोप को अपने सर पर मढ़ना पड़ता हैं । लेकिन हिंदू पंचांग में इसका कुछ उपाय भी बताया गया है । जैसे कि अगर भूलवश किसी भी व्यक्ति से चंद्रमा के दर्शन हो जाते हैं तो उसे फौरन ही पांच पत्थरों को लेकर किसी दूसरे की घर की छत पर फेंक देना चाहिए । इससे उस व्यक्ति पर लगे चंद्र दर्शन का दोष फौरन ही खत्म हो जाता है ।
ललिता सप्तमी को ललिता सहस्त्रनाम स्तोत्र के पाठ से लक्ष्मी माँ की बरसेगी अपार कृपा, - 13 सितम्बर, 2021
काशी दुर्ग विनायक मंदिर में पाँच ब्राह्मणों द्वारा विनायक चतुर्थी पर कराएँ 108 अथर्वशीर्ष पाठ और दूर्बा सहस्त्रार्चन, बरसेगी गणपति की कृपा ही कृपा -10 सितम्बर, 2021
गणपति स्थापना और विसर्जन पूजा : 10 से 19 सितंबर