भगवान श्रीकृष्ण और जामवंत से है इस गुफा का गहरा नाता, जानें कैसे
हिंदू धर्म सदियों पुराना है। इस बात की पुष्टि आज भी मिल रहे पुरातन काल के मंदिरों और गुफाओं जैसे अन्य साक्षों से होती है। ऐसी ही एक गुफा धरती का स्वर्ग कहीं जाने वाले कश्मीर में है। इस गुफा का संबंध रामायण काल के जामवंत और द्वापर युग के भगवान विष्णु के श्रीकृष्ण अवतार से है। यह गुफा जामवंत गुफा और पीर खो गुफा के नाम से जानी जाती है। इस गुफा में अनेक ऋषि मुनियों ने तपस्या की है। यह गुफा जम्मू नगर के पूर्वी छोर पर एक गुफा मंदिर है, जो जामवंत की तपोस्थली थी। इस गुफा से एक मान्यता यह भी जुड़ी है कि यह देश के बाहर कई अन्य मंदिरों व गुफाओं से जुड़ी हुई है।
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रामायण काल में जब भगवान श्री राम और रावण का युद्ध हुआ था तब भगवान श्रीराम की सेना के सेनापति जामवंत थे। युद्ध के समाप्त होने के बाद लंका पर विजय पाकर विभीषण का राज्याभिषेक कर जब भगवान श्रीराम वापस अयोध्या के लिए लौट रहे थे तब विदा लेते हुए जामवंत जी ने प्रभु राम से कहा था कि पूरे युद्ध में मुझे लड़ने का अवसर नहीं मिला जिसके कारण मैं अपनी वीरता नहीं दिखा पाया और युद्ध करने की मेरी इच्छा मेरे मन में ही रह गयी। जामवंतजी के ऐसे वचन सुनकर भगवान श्रीराम ने उन्हें वचन दिया कि मैं अपने कृष्ण अवतार में आपकी यह इच्छा अवश्य पूरी करूँगा। तब तक मेरा इंतज़ार करना।
भगवान श्रीकृष्ण का अवतार लिए भगवान विष्णु धरती पर आए। इस बीच भगवान सूर्य की तपस्या कर राजा सत्यजीत ने सम्यन्तक मणि प्रसाद में पाई थी उसे उसका भाई चुराकर भाग गया था। परंतु वो जंगल में शेर के हमले में मारा गया और उस शेर को जामवंत ने युद्ध में मारकर सम्यन्तक मणि हासिल कर ली थी।
भगवान श्री राम के वचन के अनुसार वह अपने कृष्ण रूप में उन्होंने इसी गुफा में जामवंत जी से युद्ध करा था। यह युद्ध सम्यन्तक मणि को लेकर हुआ था। यह युद्ध 27 दिनों तक चला था जिसमें न कोई जीरा जीता था न कोई हारा था। इस युद्ध के पूर्ण होने के साथ भगवान श्री राम का जामनत से किया हुआ वादा भी पूरा हुआ। जामवंत जी ने भगवान श्रीकृष्ण को पहचान लेने के बाद अपने घर आमंत्रित किया था। जामवंत जी ने अपनी पुत्री जामवती का हाथ भगवान श्रीकृष्ण के हाथों में इसी गुफा में दिया था। साथ ही उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण और अपनी बेटी जामवंती को भेंट स्वरूप सम्यन्तक मणि दी थी।
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पूरे भारत में जामवंत गुफा ही एकमात्र ऐसी गुफा है जिसमें रूद्राक्ष शिवलिंग है। इस गुफा में रूद्राक्ष शिवलिंग की स्थापना कर जामवंत जी ने भगवान शिव की कई वर्षों तक तपस्या की थी। आज भी यह शिवलिंग इस गुफा में विराजमान है और भक्तों द्वारा आज भी यहाँ पूजा की जाती है।
कहते हैं जामवंत गुफा की जानकारी सबसे पहले शिवभक्त गुरु गोरखनाथ को पता चली थी उन्होंने अपने शिष्य गरीबनाथ को इस गुफा की देखभाल करने के लिए कहा था। जिसके बाद 1454 से लेकर 1495 ईस्वी के दौरान इस गुफा में मंदिर का निर्माण हुआ था। यह गुफा लगभग 6000 साल से भी अधिक पुरानी मानी जाती है। इस गुफा से जुड़ी एक मान्यता और भी है कहते हैं कि यहाँ आज भी अरबों का खजाना दफन हैं।
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