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जगन्नाथ पुरी से जुड़ा ये ख़ास रहस्य नहीं जानते होंगे आप, आज भी लोग हो जाते हैं हैरान

Myjyotish expert Updated 08 Jul 2021 02:36 PM IST
जगन्नाथ पुरी मंदिर से जुड़े रहस्य
जगन्नाथ पुरी मंदिर से जुड़े रहस्य - फोटो : Google
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जगन्नाथ पुरी मंदिर से जुड़े रहस्य- हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि में विष्णु के दशावतारों में से एक महाप्रभु जगन्नाथ की प्रसिद्ध रथयात्रा निकाली जाती है।इस दिन अपने भाई बलभद्र, बहन सुभद्रा एवं सुदर्शन के साथ तीन अलग-अलग रथों पर सवार होकर जगन्नाथ महाप्रभु मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। इस यात्रा में भक्त रथ की रस्सी खींचने को लालायित रहते हैं। इस बार जगन्नाथ रथ यात्रा 5 जुलाई को निकाली जाएगी! मान्यता है कि यहां बाकी के तीनों धाम जाने के बाद अंत में  आना चाहिए! जगन्नाथ पुरी को धरती का वैकुंठ कहा गया है, इस स्थान को शाकक्षेत्र, नीलांचल और नीलगिरि भी कहते हैं।

पूर्ण परात्पर भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी में आरम्भ होती है। यह रथयात्रा पुरी का प्रधान पर्व भी है।मान्यताओं के अनुसार रथयात्रा निकालकर भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडिचा माता मंदिर पहुंचाया जाता हैं, जहां भगवान 7 दिनों तक आराम करते हैं. ... इसके बाद भगवान जगन्नाथ की वापसी की यात्रा शुरु होती है. इस यात्रा का सबसे बड़ा महत्व यही है कि यह पूरे भारत में एक पर्व की तरह निकाली जाती है!  और भी कुछ जानते हैं

जानें जगन्नाथ के बारे :


वेद स्वरूप है यहां भगवान, भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं।तीनों ही देव प्रतिमाएं काष्ठ की बनी हुई हैं। हर बारह वर्ष बाद इन मूर्तियों को बदले जाने का विधान है। पवित्र वृक्ष की लकड़ियों से पुनः मूर्तियों की प्रतिकृति बना कर फिर से उन्हें एक बड़े आयोजन के साथ प्रतिष्ठित किया जाता है। वेदों के अनुसार भगवान हलधर ऋग्वेद स्वरूप, श्री हरि (नारायण) सामदेव स्वरूप, सुभद्रा देवी यजुर्वेद की मूर्ति हैं और सुदर्शन चक्र अथर्ववेद का स्वरूप माना गया है।श्री जगन्नाथ का मुख्य मंदिर वक्ररेखीय (curve)आकार का है! 

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जानें यहां भगवान की मूर्तियां आधी क्यों है:


शास्त्रों के अनुसार दुनिया के सबसे बड़े भगवान विश्वकर्मा जब मूर्ति बना रहे थे तब उन्होंने एक शर्त रखी थी कि जब वह मूर्ति बनाएंगे तब वह मंदिर का दरवाजा बंद रखेंगे किंतु अगर मंदिर में कोई भी प्रवेश करेगा तो वह वही मूर्ति बनाना छोड़ देंगे अर्थ कि उन्हें अकेले ही अंदर मूर्ति बनाना था वह नहीं चाहते थे कि कोई और अंदर आए उनके अलावा! एक दिन राजा को अंदर से कोई भी आवाज नहीं आई तो उन्हें लगा भगवान विश्वकर्मा मूर्ति बनाना छोड़ कर चले गए और राजा ने वह दरवाजा खोल दिया उसी समय मैं शर्त हार गए और भगवान विश्वकर्मा वहां से उठकर चले गए  और मूर्ति पूरी बनी थी नहीं तभी से वह मूर्ति वहां आधी ही है! और आज भी उस मूर्ति की पूजा करते हैं! 

क्या श्री कृष्ण का हृदय है  यहां:


मान्यता के अनुसार जब श्री कृष्ण की लीला अवधि पूर्ण हुई तो वे देह त्यागकर वैकुंठ चले गए। उनके पार्थिव शरीर का पांडवों ने दाह संस्कार किया। लेकिन इस दौरान उनका दिल जलता ही रहा।ऐसी कथा है कि श्रीकृष्ण के देहत्याग के बाद पांडवों ने इनका अंतिम संस्कार कर दिया। लेकिन शरीर ब्रह्मलीन होने के बाद भी भगवान का हृदय जलता ही रहा तो हृदय को जल में प्रवाहित कर दिया। जल में हृदय ने लट्ठे का रूप धारण कर लिया और उड़ीसा के समुद्र तट पर पहुंच गया!

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