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जानिए कैसे होती है खरना की पूजा, छठ पूजा में खरना का होता है विशेष महत्व

my jyotish expert Updated 09 Nov 2021 02:15 PM IST
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chathh-puja - फोटो : google
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छठ पूजा का पावन त्योहार अब मनाना शुरू हो चुका है। दीवाली खत्म होने के 6 दिन बाद छठ पूजा का त्योहार मनाया जाता है। स्त्री और पुरुष संतान प्राप्ति और संतान की लंबी उम्र के लिए छठी मईया का व्रत रखते हैं। छठ पूजा का व्रत सबसे कठिन व्रतों में गिना जाता है। ये मुख्य रूप से बिहार में मनाया जाता है लेकिन उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल के कुछ जगहों में भी छठ पूजा देखने की मिलती है। 8 नवंबर को सोमवार को छठ पूजा का पहला कार्यक्रम नहाय खाय है। नहाय खाय से ही छठ पूजा की शुरुवात होती है। इस दिन व्रती सुबह सुबह स्नान करती हैं और नए वस्त्र पहनती हैं। इसके बाद पूजा करके चने की दाल, लौकी की सब्जी और चावल का प्रसाद ग्रहण करती हैं।इसी दिन पूजा की सारी सामग्री एक स्थान पर जमा करके रख दी जाती है।इसके अगले दिन 9 नवंबर, मंगलवार को खरना है। छठ पूजा में खरना का विशेष महत्व होता है। खरना कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को  मनाया जाता है। खरना के दिन औरतें दिन भर व्रत  रखती हैं। इसके बाद रात को पूजा करती हैं और फिर गुड़ की बनी खीर खाती हैं। गुड़ की खीर खाकर  फिर 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखा जाता है। इस दिन छठ पूजा का प्रसाद भी तैयार किया जाता है। आइए जानते हैं छठ पूजा में खरना  का क्या महत्व है और इसकी पूजा विधि क्या है? 
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 खरना का क्या महत्व है? 
छठ महपर्व में खरना के दिन का विशेष महत्व होता है। इसे लोहंडा भी कहा जाता है।  खरना  से एक दिन पहले नहाय-खाय होता है जिस दिन व्रती घर को पवित्र करती हैं और अगले दिन की तैयारी करती हैं। खरना के दिन स्त्रियां सुबह उठकर स्नान करती हैं और पूरे दिन भर के लिए व्रत रखती हैं। इसी दिन छठ पूजा के शाम के सूर्य अर्घ्य के लिए प्रसाद तैयार किए जाते हैं।इसके बाद शाम की पूजा के लिए गुड़ से बनी खीर बनाई जाती है। कुछ जगहों पर इस खीर को रसिया भी कहा जाता है। खरना के प्रसाद को मिट्टी के नए चूल्हे पर आम की लकड़ी से आग जलाकर बनाया जाता है। हालांकि शहरों में मिट्टी का चूल्हा मौजूद नहीं हो पाता,इसीलिए लोग नए गैस चुल्हे पर ही ये प्रसाद बना लेते हैं। इस दौरान आपको ये ध्यान रखना चाहिए कि प्रसाद बनाने का चूल्हा नया और शुद्ध हो।

 तन और मन शुद्ध करने के लिए होती है पूजा 
 जब पूजा का प्रसाद तैयार हो जाता है, तब व्रत करने वाले स्त्री या पुरुष पूजा में बैठते हैं। पूजा में खीर के साथ साथ पुरियों और मिठाइयों का भोग भी चढ़ाया जाता है। भगवान सूर्य की पूजा संपन्न करने के बाद इस प्रसाद को ग्रहण किया जाता है। इसके बाद  36 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता है। खरना पूजा इसीलिए की जाती है ताकि सूर्य को अर्घ्य देने से पहले जो कठिन व्रत  रखा जाता है, उसमें हमारा तन और मन शुद्ध हो जाए। इस बार खरना की पूजा 9 नवंबर को की जाएगी। इस दिन  5 बजकर 30 मिनट पर सूर्यास्त का समय है।

 प्रसाद का होता है विशेष महत्व 
खरना की पूजा के दिन प्रसाद ग्रहण करने का भी विशेष महत्व होता है। जब पूजा करने के बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करती हैं तो इस दौरान परिवार के सभी सदस्यों को चुप रहना होता है। अगर इस दौरान थोड़ी सी भी शोर मच गई तो व्रती को उसी समय खाना रोकना पड़ता है।  इस दिन  पूजा का प्रसाद जब तक व्रती ना ग्रहण करले तब तक प्रसाद अन्य लोगों में नहीं बांटा जाता है। व्रती के प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही परिवार का कोई अन्य सदस्य भोजन करता है।
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