वास्तव में शरीर में सैकड़ों मृत्यु के स्थान हैं, जिनमें एक तो साक्षात् मृत्यु या काल है, दूसरे अन्य आने-जाने वाली भयंकर आधि-व्याधियाँ हैं, जो आधी मृत्यु के समान हैं। आने-जाने वाली आधि-व्याधियाँ तो जप-तप एवं औषध आदि से टल भी जाती हैं, परंतु काल-मृत्यु का कोई उपाय नहीं है। रोग, सर्प, शस्त्र, विष तथा अन्य घात करने वाले बाघ, सिंह, दस्यु आदि प्राणिवर्ग ये सब भी मृत्यु के द्वार ही हैं। किंतु जब रोग आदि के रूप में साक्षात् मृत्यु पहुँच जाती है तो देव-वैद्य धन्वन्तरि भी कुछ नहीं कर पाते।
औषध, तन्त्र, मन्त्र, तप, दान, रसायन, योग आदि भी काल से ग्रस्त व्यक्ति की रक्षा नहीं कर सकते। सभी प्राणियों के लिये मृत्यु के समान न कोई रोग है, न भय, न दुःख है और न कोई शंका का स्थान अर्थात् केवल एकमात्र मृत्यु से ही सारे भय आदि आशंकाएँ हैं। मृत्यु पुत्र, स्त्री, मित्र, राज्य, ऐश्वर्य, धन आदि सबसे वियुक्त करा देती है और बद्धमूल वैर भी मृत्यु से निवृत्त हो जाते हैं।
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पुरुष को आयु सौ वर्षों की कही गयी है, परंतु कोई अस्सी वर्ष जीता है कोई सत्तर वर्ष। अन्य लोग अधिक-से-अधिक साठ वर्षतक ही जीते हैं और बहुत-से तो इससे पहले ही मर जाते हैं। पूर्वकर्मानुसार मनुष्य की जितनी आयु निश्चित है, उसका आधा समय तो रात्रि ही सोने में हर लेती है। बीस वर्ष बाल्य और बुढ़ापे में व्यर्थ चले जाते हैं। युवा-अवस्था में अनेक प्रकार की चिन्ता और काम की व्यथा रहती है। इसलिये वह समय भी निरर्थक ही चला जाता है। इस प्रकार यह आयु समाप्त हो जाती है और मृत्यु आ पहुँचती है। मरण के समय जो दुःख होता है, उसकी कोई उपमा नहीं। हे मातः ! हे पित: ! हे कान्त ! आदि चिल्लाते व्यक्ति को भी मृत्यु वैसे ही पकड़ ले जाती है, जैसे मेढक को सर्प पकड़ लेता है।
व्याधि से पीड़ित व्यक्ति खाट पर पड़ा इधर-उधर हाथ-पैर पटकता रहता है और साँस लेता रहता है। कभी खाट से भूमि पर और कभी भूमि से खाटपर जाता है, परंतु कहीं चैन नहीं मिलता। कण्ठ में घर्र-घर्र शब्द होने लगता है। मुख सूख जाता है। शरीर मूत्र, विष्ठा आदि से लिप्त हो जाता है। प्यास लगने पर जब वह पानी माँगता है तो दिया हुआ पानी भी कण्ठ तक ही रह जाता है। वाणी बंद हो जाती है, पड़ा पड़ा चिन्ता करता रहता है कि मेरे धन को कौन भोगेगा? मेरे कुटुम्ब की रक्षा कौन करेगा ? इस तरह अनेक प्रकार की यातना भोगता हुआ मनुष्य मरता है और जीव इस देह से निकलते ही जोंक की तरह दूसरे शरीर में प्रविष्ट हो जाता है।
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