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Home ›   Blogs Hindi ›   Annapurna Vrat: All wishes are fulfilled due to the effect of fasting on the birth anniversary of Mother Annap

Annapurna Vrat: मां अन्नपूर्णा की जयंती पर व्रत के प्रभाव से पूर्ण होती हैं सभी मनोकामनाएं

my jyotish expert Updated 26 Dec 2023 10:02 AM IST
Annapurna Jayanti
Annapurna Jayanti - फोटो : google

खास बातें

Annapurna Vrat: मां अन्नपूर्णा की जयंती पर व्रत के प्रभाव से पूर्ण होती हैं सभी मनोकामनाएं 

Annapurna Jayanti मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा के दिन अन्न पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है. धार्मिक गाथाओं में देवी अन्नपूर्णा का विशेष स्थान है. ऐसा माना जाता है कि जिस घर में वह निवास करते हैं वह घर हमेशा अन्न से भरा रहता है. उस स्थान से दरिद्रता दूर रहती है. यह माता पार्वती को समर्पित एक व्रत होता है. जिसका नाम अन्नपूर्णा व्रत है. यह माता के अन्नपूर्णा अवतार से संबंधित है. 
 
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Annapurna Vrat: मां अन्नपूर्णा की जयंती पर व्रत के प्रभाव से पूर्ण होती हैं सभी मनोकामनाएं 


Annapurna Jayanti मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा के दिन अन्न पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है. धार्मिक गाथाओं में देवी अन्नपूर्णा का विशेष स्थान है. ऐसा माना जाता है कि जिस घर में वह निवास करते हैं वह घर हमेशा अन्न से भरा रहता है. उस स्थान से दरिद्रता दूर रहती है. यह माता पार्वती को समर्पित एक व्रत होता है. जिसका नाम अन्नपूर्णा व्रत है. यह माता के अन्नपूर्णा अवतार से संबंधित है. 

When and why is Annapurna Jayanti celebrated? हिंदू पंचांग के अनुसार यह व्रत हर वर्ष मार्गशीर्ष माह की पूर्णीमा तिथि को यह पर्व मनाया जाता है. ग्रंथों के अनुसार यह बहुत ही शुभ दिन होता है. इस साल मां अन्नपूर्णा का व्रत अनुष्ठान 26 दिसंबर 2023 को मनाया जाएगा. मान्यता है कि इस अनुष्ठान के दौरान अन्नपूर्णा व्रत की कथा अवश्य पढ़नी और सुनने से सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं. माता का पूजन करने से मां प्रसन्न होती हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं.
 
मोक्षदा एकादशी पर सोई हुई किस्मत जगाने का समय -लक्ष्मी नारायण मंदिर, दिल्ली : 22 से 23 दिसंबर -2023
 

 

माँ अन्नपूर्णा जयंती कथा महत्व 

एक समय की बात है, काशी में धनंजय नामक व्यक्ति अपनी पत्नी सुलक्षणा के साथ रहा करता था. दोनों दंपत्ति धर्म कर्म करने वाले थे किंतु गरीबी ही उन्के दुःख का एकमात्र कारण थी. यह दुःख उसे हर समय परेशान करता रहता था. एक दिन सुलक्षणा ने अपने पति से कहती है कि वह किसी काम को करने हेतु प्रयास करें तो जीवन शायद अच्छे से चल पाए. आखिर कब तक ऐसे ही काम चलता रहेगा. सुलक्षणा की बात धनंजय के मन में बैठ जाती है. 

वह भगवान शंकर जी को प्रसन्न करने के लिए बैठ जाता है और उनसे प्रार्थना करता है कि प्रभु मैं पूजा-पाठ के बारे में कुछ नहीं जानता, मैं तो बस आपके भरोसे बैठा हूं. उनसे इतना आग्रह करने के बाद वह भूखे-प्यासे भगवान का स्मरण करता है, यह देखकर भगवान शंकर ने उनके कान में कहा अन्नपूर्णा. इस प्रकार धनंजय इसी सोच में डूब गया कि आखिर यह नाम उसे क्यों सुनाई दिया. तब मंदिर की ओर से ब्राह्मणों को आते देख पूछने लग पंडितजी माता अन्नपूर्णा कौन है. ब्राह्मण बोले- तुमने अन्न त्याग दिया है, अत: तुम अन्न के विषय में ही सोचते हो. घर जाकर खाना खाओ. धनंजय ने घर जाकर महिला को सारी बात बताई. वह बोली- नाथ! चिंता मत करो, यह मंत्र स्वयं शंकरजी ने दिया है. वे खुद ही खुलासा कर देंगे. रात को भगवान के उन्हें सपने में आदेश दिया कि तुम पूर्व दिशा में जाओ और इस नाम को जपते चलते जाओ. 

इस तरह वह चल पड़ा और अन्नपूर्णा का नाम जपता रहा. ऐसा कई दिनों तक चलता रहा. तब मार्ग में उसने वन का सौन्दर्य देखा. एक सुन्दर झील भी दिखाई दे रही थी, जिसके किनारे अनेक अप्सराएँ समूह बनाकर बैठी थीं. माता अन्नपूर्णा कथा सुन रही थीं और उसने वह शब्द सुना जिसे वह खोजने निकला था. धनंजय ने उनके पास जाकर पूछा- हे देवियों! आप यह क्या कर रही हैं मुझे भी इस के बारे में बताएं तब उन्होंने उसे कहा कि सब माता अन्नपूर्णा का व्रत कर रही हैं.


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अन्नपूर्णा व्रत से दूर हुए सभी कष्ट 

तब धनंजय ने इस व्रत को किया. व्रत पूरा होने पर, उसके सामने सोने के सिंहासन पर माँ अन्नपूर्णा विराजमान होते हुए दर्शन देती हैं. धनंजय दौड़कर जगदम्बा के चरणों में गिर पड़ा. देवी ने उसके मन की पीड़ा समझ ली, माता ने उसकी मनोकामना को पूर्ण किया. माँ का आशीर्वाद लेकर धनंजय घर आ गया. सुलक्षणा को सारी बात बताई. माता की कृपा से उनके घर में धन-संपत्ति बढ़ने लगी और इस प्रकार उसकी दरिद्रता दूर होती है और धन धान्य का सुख उसे प्राप्त होता है.

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