बाबा अमरनाथ की गुफा हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल हैं। जो कश्मीर के श्रीनगर शहर के उत्तर पूर्व में समुद्रतल से 13,600 फुट की ऊँचाई पर स्थित है । अमरनाथ की गुफा भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह गुफा 150 फुट ऊंची और करीब 90 फुट लंबी हैं। अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है। एवं अमरनाथ गुफा के शिवलिंग को अमरेश्वर के नाम से भी जाना जाता हैं। इसी पवित्र स्थान पर भगवान शिव ने माँ पार्वती को अमरत्व यानि सदा सदा के लिए अमर होने के रहस्य के विषय में बताया था।
अनोखा हैं ये प्राकृतिक शिवलिंग
बाबा अमरनाथ की इस गुफा की प्रमुख विशेषता यह है कि यहां का शिवलिंग प्राकृतिक रूप से निर्मित हैं। इसी कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहा जाता हैं। गुफा में ऊपर से जगह-जगह बर्फ के पानी की बूंदें टपकती रहती हैं। इन हिम बूंदों की वजह से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता हैं। मगर रहस्य की बात यह हैं कि गुफा में कई जगह बर्फ गिरती हैं मगर वो कच्ची, भुरभुरी बर्फ होती हैं और सिर्फ शिवलिंग की बर्फ हमेशा ठोस होती हैं। इसके अतिरिक्त चंद्रमा के बढ़ने-घटने के साथ ही शिवलिंग का आकार भी बढ़ता-घटता रहता हैं। चंद्रमा का शिव से खास संबंध माना गया हैं इसलिए एक कारण यह भी हैं कि जब चंद्रमा लुप्त हो जाता हैं तब हिमलिंग भी लुप्त हो जाता हैं। सवाल यह हैं कि यहा और भी कई गुफाएं हैं जो बर्फ से ढकी हैं एवं उनकी भी छत से बर्फ की बूंद टपकती हैं। मगर क्यों उन गुफाओं में एसा कोई शिवलिंग निर्मित नहीं हो पाता हैं।
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अमरनाथ यात्रा पर आते हैं लाखों लोग
आषाढ पूर्णिमा से शुरु होकर रक्षा बंधन तक पूरे सावन माह में बाबा अमरनाथ के दर्शन प्राप्त करने को हर वर्ष लाखों श्रद्धालु कठिन एवं लंबा सफर तय करके आते हैं। अमरनाथ यात्रा पर जाने के लिए 2 मार्ग हैं- एक पहलगाम जहा से गुफा की दूरी करीब 48 किलोमीटर की हैं और दूसरा सोनमर्ग बालटाल जहा से 14 किलोमीटर की दुरी हैं। यहा तक पहुँचने के बाद बची हुई यात्रा पैदल की जाती है। यात्रा को पुरा करने के लिए तकरीबन 5 दिन लगते हैं। मान्यता के अनुसार भगवान शिव इस गुफा में पहले पहल श्रावण मास की पूर्णिमा को आए थे इसलिए उस दिन को अमरनाथ की यात्रा को विशेष महत्व मिला।
क्या है दर्शन का महत्व
इस गुफा का महत्व सिर्फ इसलिए नहीं है कि यहां स्वयंभू हिम शिवलिंग हैं। बल्कि इस गुफा का असल महत्व इसलिए हैं क्योकि यहा शिव ने देवी पार्वती को अमरत्व का मंत्र सुनाया था। यह शिव का प्रमुख और पवित्र स्थान हैं क्योंकि यहा रहकर उन्होंने कई वर्ष तक तपस्या की थी। माता पार्वती के साथ अमरत्व का यह रहस्य एक शुक यानि तोता और दो कबुतरों ने भी सुन लिया था जो बाद में शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गए थे। माना जाता हैं कि कबुतरों का यह अमर जोड़ा आज भी कई श्रद्धालुओं को बाबा अमरनाथ की गुफा के आसपास दिखाई देता हैं ।
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