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ऐसी मान्यता है कि अहोई माता की विधि-विधान से पूजा करने से संतान को लंबी आयु प्राप्त होती है। साथ ही उनकी संतान की ज़िन्दगी में उन्नति और, सुख-समृद्धि आती है। इसके अलावा जो संतान की कामना करने वाले दंपति हैं, उनके घर में भी खुशखबरी आती है। मां अपने बच्चों की लंबी उम्र की कामना हेतु ये व्रत रखती हैं। वे काफी श्रद्धा भाव से माता अहोई की पूजा करती हैं। ज्योतिष शास्त्र में अहोई अष्टमी का विशेष महत्व बताया गया है। जो लोग इस व्रत को करते हैं,उनको इस व्रत का महत्व और इससे संबंधित कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए। आइए प्रकाश डालते हैं उन बातों पर।
अहोई अष्टमी व्रत का महत्व
जिस तरह हिन्दू धर्म में अन्य व्रतों का महत्व है,उसी तरह अहोई अष्टमी का व्रत भी अपने आप में खास महत्व रखता है।संतान की भलाई और उन्नति के लिए यह व्रत रखा जाता है। कहा जाता है कि अहोई अष्टमी का व्रत बहुत कठिन होता है।मान्यता है कि जो भाग्यशाली होते हैं,उन्हें ही संतान प्राप्ति का सुख प्रदान होता है। इसीलिए माताएं ही अपनी संतान की लंबी आयु के लिए ये व्रत रखती हैं। इस दिन स्त्रियां निर्जला व्रत रखती हैं। ऐसी मान्यता है कि अहोई अष्टमी के दिन व्रत रखकर विधि विधान से अहोई माता की पूजा करने से मां पार्वती अपने पुत्रों की तरह ही आपके बच्चों की रक्षा करती हैं। पुत्र प्राप्ति के लिए भी यह व्रत खास महत्व रखता है।
अहोई अष्टमी व्रत का शुभ मुहूर्त-
अहोई अष्टमी की तिथि गुरुवार, 28 अक्टूबर 2021 को दोपहर 12 बजकर 51 मिनट से शुरू होगी और शुक्रवार, 29 अक्टूबर सुबह 02 बजकर 10 मिनट तक रहेगी।
इन खास बातों का रखें ख्याल।
• व्रत के दिन अहोई माता की पूजा करने से पहले भगवान गणेश की पूजा जरूर करें।
• इस दिन अहोई अष्टमी का व्रत तारों को देखकर खोला जाता है। तारों के निकलने के बाद ही अहोई माता की पूजा की जाती है।
• अहोई माता की कथा सुनते समय अपने हाथों में 7 प्रकार के अनाज जरूर रखें। पूजा खत्म हो जाने के बाद यह अनाज किसी गाय को खिला दें।
• अहोई माता की पूजा के समय बच्चों को साथ में जरूर बैठाएं। अहोई माता को भोग लगाने के बाद वह प्रसाद बच्चों को जरूर खिलाएं।
अहोई अष्टमी व्रत करने की विधि
1) जो भी माताएं ये व्रत रख रही हैं ,वो सूर्योदय से पहले स्नान कर लें और व्रत रखने का संकल्प लें।
2) अहोई माता की पूजा करने के लिए दीवार या कागज पर गेरू से अहोई माता का चित्र बनाएं। इसके साथ सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र भी बनाएं।
3) शाम को पूजा के समय अहोई माता के चित्र के सामने एक चौकी रखें।फिर उस पर जल से भरा कलश रख दें।
4) अहोई माता की पूजा रोली और चावल से करें। फिर माता को मीठे पुए या आटे के हलवे का भोग लगाएं।
5) कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं। फिर हाथ में गेंहू के सात दाने लेकर अहोई माता की कथा सुनें।
6) इसके बाद तारों को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलें। फिर अपने से बड़ों के चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लें।
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