जिन्हें आज की आधुनिक नारी अपनी कई व्यवस्तओं के बावजूद बड़ी निष्ठा और सम्मान के साथ निभाती हैं। यहां यह कहना भी गलत न होगा की आज के इस आधुनिक काल में इन महिलाओं को अपने पति, परिवार और समाज से पूरा-पूरा सहयोग भी प्राप्त हो रहा है। इन व्रत उपवासों का सभी को इंतज़ार रहता है। बाजार और मॉल इन त्योहारों से जुड़ी सुन्दर सुन्दर चीज़ों से सजे रहते हैं। अतः सोशल मीडिया भी इनकी लेटेस्ट जानकारी से भरा रहता है। लेकिन एक कठिनाई जिसका सबको सामना करना होता वह यह है की कोई कुछ कहता है तो कोई कुछ और। व्यवस्तओं के कारण सभी में रीती रिवाज़ों को उचित रूप से निभाने की घबराहट बनी रहती है।
इसलिए हम यहां इस माह में आने वाले प्रत्येक शुभ अवसर, दिन-त्यौहार और व्रत-उपवास से जुड़ी सभी जानकारी आप तक पहुंचने का प्रयास जारी रखेंगे।
अहोई अष्टमी के व्रत
कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष में आने वाली अष्टमी के दिन यानी दीवाली से एक सप्ताह पूर्व अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस बार यह व्रत 8 नवम्बर (रविवार) को पड़ रहा है। माना जाता है की इस व्रत को रखने के कुछ निश्चित नियम होते हैं। जिनके निभाए बिना इस व्रत को अधूरा माना जाता हैं। इस व्रत को अधिकतर उत्तर भारत की महिलाएं ही रखती रही हैं लेकिन इससे जुड़े महातम के कारण आजकल की युवा महिलाएं भी इसकी और आकर्षित हो रही हैं। कहा जाता है की जहां यह व्रत संतान प्राप्ति में सहायक है वही इस व्रत को रखने से ग्रह-कलेश दूर होकर परिवार में सुख-समृद्धि आती है। अनहोनी को टालने वाला है यह व्रत इसीलिए अहोई के नाम से प्रसिद्ध है।
व्रत की विधि और नियम:-
अहोई अष्टमी के दिन व्रत रखने वाली महिलाएं पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं तथा अहोई माता से अपनी संतान की लम्बी उम्र की कामना करती हैं। जिन महिलाओं को संतान सुख प्राप्त नहीं है वह भी इस दिन उपवास रखकर संतान प्राप्ति की कामना करती हैं। व्रती महिलाएं शाम के समय घर की दिवार पर आठ कोनो वाली एक पुतली का निर्माण करती हैं जिसे माता पार्वती का प्रतीक माना जाता है। इसके नज़दीक स्याउ माता और उसके सात बच्चे भी बनाये जाते हैं जिनका जिक्र अहोई अष्टमी की व्रत कथा में भी किया गया है। इस दिन तांबे के लोटे से अर्घ देना निषेध माना जाता है। व्रती महिलाएं इस दिन बच्चों को अप शब्द बोलने से परहेज़ करें क्योंकि यह व्रत बच्चों की मंगल कामना के लिए ही रखा जाता है। व्रत के दौरान सोने से भी व्रत का फल नष्ट माना जा सकता है। करवे का व्रत पति के लिए होता है इसलिए उसमें चंद्रमा को अर्घ दिया जाता है। वहीं अहोई अष्टमी पर पूरे दिन उपवास रखने के पश्चात् रात में तारों की छाओं में इस व्रत को खोला जाता है। यहां चंद्रमा को पति और तारों को बच्चों का प्रतीक माना जाता है। इस दिन अर्घ देते समय महिलाएं अपनी संतान के लिए धन-संपदा और आयु-वृद्धि की कामना विशेष रूप से तारों से करती हैं।
शुभ मुहूर्त :-
रविवार 8 नवंबर- शाम 5 बजकर 31 मिनट से शाम 6 बजकर 50 मिनट तक
अवधि- 1 घंटा 19 मिनट
अष्टमी तिथि:- 8 नवंबर, सुबह 7 बजकर 29 मिनट से 9 नवंबर, सुबह 6 बजकर 50 मिनट तक
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अहोई अष्टमी व्रत कथा:-
एक साहूकार के 7 बेटे थे और एक बेटी थी। साहुकार ने अपने सातों बेटों और एक बेटी की शादी कर दी थी। अब उसके घर में सात बेटों की साथ सात बहुंएं भी थीं।
साहुकार की बेटी दीवाली पर अपने ससुराल से मायके आई हुई थी। दीवाली पर घर को लीपना था, इसलिए सारी बहुएं जंगल से मिट्टी लेने गईं। ये देखकर ससुराल से मायके आई साहुकार की बेटी भी उनके साथ चल पड़ी।
साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी, उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने सात बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया। इस पर क्रोधित होकर स्याहु ने कहा कि मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।
स्याहु के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करने लगी कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं, वे सात दिन बाद मर जाते। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवा कर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और छोटी बहु से पूछती है कि तू किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है और वह क्या चाहती है? जो कुछ तेरी इच्छा हो वह मुझ से मांग ले। साहूकार की बहु ने कहा कि स्याहु माता ने मेरी कोख बांध दी है जिससे मेरे बच्चे नहीं बचते हैं। यदि आप मेरी कोख खुलवा दें तो मैं आपका उपकार मानूंगी। गाय माता ने उसकी बात मान ली और उसे साथ लेकर सात समुद्र पार स्याहु माता के पास ले चली।
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रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं। अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।
छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।
वहां छोटी बहू स्याहु की भी सेवा करती है। स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है और कहती है कि घर जाने पर तू अहोई माता का उद्यापन करना। सात अहोई बनाकर सात कड़ाही देना। उसने घर लौट कर देखा तो उसके सात बेटे और सात बहुएं बैठीं हुई मिली। वह ख़ुशी के मारे भाव-भिवोर हो गई। उसने सात अहोई बनाकर सात कड़ाही देकर उद्यापन किया।
अहोई का अर्थ एक यह भी होता है 'अनहोनी को होनी बनाना.' जैसे साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था। जिस तरह अहोई माता ने उस साहूकार की बहु की कोख को खोल दिया, उसी प्रकार इस व्रत को करने वाली सभी नारियों की अभिलाषा अहोई माता पूर्ण करती है।
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