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काल गणना के अंतर को दूर करने के लिए हर तीसरे साल अधिक मास या अधिक मास लगता है. इतना ही नहीं अधिकमास को पुरूषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अधिकमास के अधिपति भगवान विष्णु हैं और पुरुषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है. ऎसे में इस नाम के साथ जुड़ने पर इस माह के समय विष्णु पूजन को विशेष माना गया है.
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अधिक मास का जीवन पर प्रभाव
अधिक मास के प्रभाव का असर जीवन पर विशेष रुप से होता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने जिस प्रकार सभी के कष्टों को दूर किया उसी प्रकार उन्होंने इस समय के कष्ट को भी दूर किया. इस मास को अपना अधिकार प्रदान किया. अधिकमास अधिकमास और पुरूषोत्तम मास भगवान विष्णु को समर्पित है. यही कारण है कि इस माह को पुरूषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है. इस समय पर किया जाने वाला पूजन भक्तों के पापों का शमन कर देने वाला होता है. धार्मिक पुराणों में इस संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं.
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अधिकमास पर किए जाने वाले अनुष्ठान
पौराणिक कथाओं के अनुसार अधिकमास लगने के कारण इस माह का स्वामी कोई नहीं बन पा रहा था. तब सभी देवताओं ने उनकी मुक्ति के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना की तब इस तपस्या प्रार्थना से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और उन्होंने अपना सर्वोत्तम नाम पुरूषोत्तम इस अधिकमास को प्रदान किया. इसके अलावा भगवान विष्णु ने यह वरदान दिया है कि जो भी व्यक्ति इस माह में जप, दान, स्नान जैसे शुभ कार्यों को करते हैं तथा. आराधना और धार्मिक अनुष्ठान करेगा, उसे अच्छे कर्मों का फल मिलेगा.
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पुरूषोत्तम मास को पूजा-पाठ और श्रीमद्भागवत कथा के लिए सबसे पवित्र माना जाता है. पुरूषोत्तम मास में माता भगवान श्रीहरि जगत्पति विष्णु की पूजा की जाती है. उनकी पूजा की जाती है. अगर व्यक्ति भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप विधि-विधान से करता है तो उसे कई गुना फल मिलता है. पुरूषोत्तम काम को सबसे पवित्र महीना माना जाता है. इस समय पर हवन यज्ञ इत्यादि का आयोजन करना बेहद उत्तम फलों को प्रदान करने वाला समय होता है.