जानें क्यों की जाती है पीपल के पेड़ की पूजा।
एक पौराणिक कथा के अनुसार माता लक्ष्मी और उनकी छोटी बहन दरिद्र भगवान विष्णु के पास गए और उनसे प्रार्थना करने लगे की "हे ! प्रभु हम कहाँ रहें?" यह बात सुन कर भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी और उनकी बहन को पीपल के पेड़ पर रहने की अनुमति देदी। और इसके बाद वह दोनों पीपल के पेड़ पर रहने लगीं।
भगवान विष्णु की तरफ से उन्हें ये वरदान मिला की जो व्यक्ति शनिवार के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करेगा उससे शनि गृह के प्रभाव एवं प्रकोप से मुक्ति मिलेगी और उस व्यक्ति पर माता लक्ष्मी की अपार कृपा रहेगी। कहा जाता है की शनि के प्रकोप से ही घर का ऐश्वर्या नष्ट एवं बर्बाद होता है और जो व्यक्ति पीपल के पेड़ की पूजा हर शनिवार करता है उसपे शनि देव और माता लक्ष्मी की कृपा सदैव रहती है।
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धर्म शास्त्र के अनुसार पीपल का पेड़ भगवान विष्णु का गृह निवास होता है। इसी लोक विश्वास और आस्था के आधार पर लोग आज भी पीपल के पेड़ को काटने से डरते हैं। परन्तु यह भी कथन है की यदि पीपल के पेड़ को काटना आवश्यक हो तो उससे रविवार के दिन काटा जा सकता है। गीता में पीपल की तुलना मानव के देह से की गयी है।
वैज्ञानिक दृष्टि से पीपल प्राणवायु का केंद्र है। अथार्त पीपल का पेड़ पर्याप्त मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करता है और ऑक्सीजन छोड़ता है। संस्कृत में पीपल को चलदलतरू कहते हैं। 'पात सरिस मन डोला' शायद थोड़ी सी हवा के हिलने की वजह से तुलसीदास ने मन की चंचलता की तुलना पीपल के पत्ते के हिलने से हुए।
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पद्मपुराण के अनुसार पीपल की परिकर्मा करके प्रणाम करने से आयु में वृद्धि होती है। शनि की सादे सती और ढैया काल में पीपल की परिकर्मा और पूजन करने से साढ़े सती और और ढैया का प्रकोप कम होता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार पीपल में पितरों का वास होने के साथ ही देवताओं का भी वास होता है।
संकद पुराण के अनुसार पीपल की जड़ में श्री विष्णु, तन में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान श्री हरी और फल में सब देवताओं से युक्त भगवान का अच्युत स्थान है। इसलिए पीपल के पेड़ की पूजा की जाती है।
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