Vrischika Sankranti
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सूर्य के संक्रमण काल को संक्रांति कहा जाता है. सूर्य का हर राशि में प्रवेश एक विशेष नाम के रुप में जाना जाता है. इसी में सूर्य का वृश्चिक राशि में जाना सूर्य संक्रांति कहलाता है. सूर्य तुला राशि से वृश्चिक राशि में प्रवेश करता है तो इस समय को वृश्चिक संक्रांति के रुप में पूजा जाता है. प्रत्येक माह जब ग्रहों के राजा सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, उस दिन को संक्रांति कहा जाता है. हिंदू पंचांग एवं ज्योतिष गणना के अनुसार एक वर्ष में 12 संक्रांति मनाई जाती हैं.
इस समय कार्तिक माह चल रहा है और अब सूर्य तुला राशि से वृश्चिक राशि में प्रवेश करेगा, इसे वृश्चिक संक्रांति के रुप में पूजा जाएगा. यह दिन सूर्य पूजा के लिए सर्वोत्तम माना जाता है. आइए जानते हैं वृश्चिक संक्रांति का महत्व.
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वृश्चिक संक्रांति पूजा
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य देव को ग्रहों का राजा कहा जाता है. इनकी पूजा का विशेष महत्व भी रहा है. सूर्य पूजन द्वारा स्वास्थ्य अच्छा प्राप्त होता है और मान-सम्मान में भी वृद्धि होती है. संक्रांति को सूर्य पूजा के लिए सबसे खास दिन माना जाता है. इस दिन सूर्य देव एक राशि से निकल कर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं.
इस समय सूर्य देव तुला राशि में विराजमान हैं और अब वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे. शास्त्रों के अनुसार इस दिन दिए गए दान का दोगुना फल मिलता है. कार्तिक माह में आने वाली यह संक्रांति कई मायनों में विशेष बन जाती है क्योंकि सूर्य का गोचर अब प्रबल होता है. यहां सूर्य को मजबूती भी प्राप्त होती है तथा प्रकृति में आने वाले बदलाव भी इस संक्रांति से प्रभावित होते हैं.
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सूर्य का वृश्चिक राशि में गमन
पंचांग के अनुसार वृश्चिक संक्रांति कार्तिक माह में सूर्यदेव की विशेष कृपा पाने का बेहद खास समय होता है. इसके साथ ही महापुण्य काल के दौरान दान स्नान एवं पूजा के द्वारा शुभ फलों की प्राप्ति होती है. संक्रांति के दिन सुबह उठकर गंगा जल से स्नान करना बहुत ही शुभ होता है. इसके बाद संक्रांति के दिन श्वेत, लाल अथवा पीले रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है. सुबह-सुबह सूर्यदेव को जल अर्पित करें. सूर्य को जल अर्पित समय सूर्य मंत्र का जाप करना शुभ होता है.
सूर्य के गायत्री मंत्र का जाप करने से जीवन में सभी प्रकार के ज्ञान की प्राप्ति होती है
" ऊँ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्यः प्रचोदयत।"