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व्रत कथा (Vrat katha)
किसी समय कौंडिण्य नगर में एक ब्राह्मण रहता था। उनका नाम वामन और उनकी पत्नी का नाम सत्या था। उनके घर मैं वैसे तो किसी भी तरह की कोई कमी नहीं थी। परंतु वह संतान सुख से वंचित थें। और हमेशा दुखी रहते थे।
एक दिन की बात है, जब स्वयं नारद जी उनके घर आए। और उस ब्राह्मण ने नारद मुनि(Narad Muni) की स्वेच्छा पूर्वक खूब सेवा की। और अपनी समस्या से चिंतित ब्राह्मण नारद मुनि से इसके हल का उपाय पूछा। तभी नारद मुनि ने उन्हें समाधान(solution) बताते हुए कहा कि तुम्हारे नगर के बाहर एक वन है। और उसके दक्षिण दिशा(south direction) में एक बिल्व वृक्ष(bilva vriksh) है। जिसके नीचे भगवान शंकर(lord shiva) और माता पार्वती एक साथ लिंग रूप में विराजमान है। अतः जाओ उनकी पूजा करो। उनकी आराधना करने से तुम्हारी मनोकामना(manokamna) अवश्य पूर्ण होगी। तब ब्राह्मण ने वह शिवलिंग ढूंढे। और उनकी विधिवत रूप से पूजा-अर्चना की। इसी तरह लगातार पांच वर्षों तक वह पूजा करते रहे।
उस ब्राह्मण को एक दिन शिवलिंग (shivlinga) की पूजा के लिए फूल तोड़ने के दौरान सांप ने डस लिया। और ब्राह्मण उसी जंगल में मूर्छित हो गया। इस प्रकार घर लौटने में काफी देर होने के कारण उनकी पत्नी उन्हें ढूंढने निकली। पति को गंभीर हालत में देख, वह रोने लगी और माता पार्वती एवं वन देवता का स्मरण करने लगी। ब्राह्मणी की विलाप भरी पुकार सुनकर माता पार्वती और वन देवता दोनों प्रकार हुए। और मूर्छित ब्राह्मण के मुख में अमृत डाला। जिससे ब्राह्मण पुनः उठ कर बैठ गए। फिर ब्राह्मण(brahman) ने मां पार्वती का पूजन किया। मां पार्वती उनके पूजन से प्रसन्न हुई और उन्हें इच्छा अनुसार वर मांगने को कहा तब इन दोनों ने संतान सुख के लिए अपनी इच्छा प्रकट की। फिर माता पार्वती ने विजया पार्वती व्रत करने का उपाय बताया।
आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन उन दोनों ने विधि-विधान से माता पार्वती का इस व्रत का पालन किया। फल स्वरूप घर में संतान की प्राप्ति हुई। तभी से यह व्रत प्रचलित है । और इस व्रत को करने से स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती(saubhagyawati) होती हैं। एवं पुत्र रत्न(putra ratna) की प्राप्ति होती है।
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