Varaha Jayanti
- फोटो : my jyotish
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन वराह जयंती मनाई जाती है. धर्म कथाओं के आधार पर भगवान विष्णु ने पृथ्वी को पापियों से मुक्त कराने हेतु वराह अवतार लिया था. भगवान वराह रूप की पूजा कर उनसे सुख-समृद्धि की कामना की जाती है.
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धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष नामक राक्षस का वध किया था, जिसने पृथ्वी को छीनकर समुद्र के अंदर छिपा दिया था. इस बार द्विपुष्कर योग में इस जयंती की पूजा संपन्न होगी जो बेहद विशेष फल प्रदान करने वाली होगी. आइये जानें वराह जयंती पर पूजा विधि और इसके धार्मिक महत्व के बारे में विस्तार से.
वराह जयंती पूजा मुहूर्त
वराह जयंती के दिन कई सारे शुभ योगों के बनने से इस दिन किया जाने वाला पूजन अत्यंत ही खास होने वाला है. इस शुभ दिन पर द्विपुष्कर योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग बनेंगे जिसके चलते पूजा और व्रत की शुभता का प्रभाव कई गुना होकर भक्तों को प्राप्त होगा. वराह जयंती तिथि का समय 17 सितंबर 2023 का होगा और इस दिन वराह जयंती पूजा मुहूर्त के लिए दोपहर 12:55 बजे से 03:21 बजे तक का समय विशेष रहेगा. इसके अलावा संपूर्ण दिन भक्त प्रभु के पूजन भजन द्वारा शुभ फलों को प्राप्त कर पाएंगे.
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कथाओं के अनुसार हिरण्याक्ष ने अपनी शक्ति से पृथ्वी और स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था तब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र के अन्दर छिपा दिया. सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद की गुहार लगाई. भगवान विष्णु का वराह अवतार प्रकट हुआ और उन्होंने पृथ्वी की खोज शुरू कर दी. वराह रुप में अपनी थूथन पर दो दांतों के बीच रखकर समुद्र से पृथ्वी को बाहर निकाला और स्थापित कर दिया और हिरण्याक्ष का अंत करके भगवान वराह ने पृथ्वी की रक्षा की.
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वराह जयंती पूजा महत्व
वराह जयंती का समय बेहद शुभ एवं पवित्र समय होता है. इस दिन सभी भक्त भगवान की पूजा में अपना संपुर्ण दिवस व्यतीत करते हैं. भक्त जल्दी उठते हैं और पवित्र स्नान करते हैं. विष्णु जी की वराह मूर्ति एवं चित्र को मंदिर में स्थापित किया जाता है और उसके उपरांत पूजन कार्य संपन्न होते हैं. है. इस दिन किए जाने वाले इस धार्मिक कार्य को बेहद आवश्यक एवं पवित्र अनुष्ठान के रुप में देखा जाता है. इस पूजा कार्य के द्वारा व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति होती है.