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उत्पन्ना एकादशी की महत्ता
एकादशियों में उत्पन्ना एकादशी का विशेष महत्व है. जो भी भक्त एकादशी व्रत की शुरुआत करना चाहता है वह इस एकादशी से अपने व्रत की शुरुआत कर सकता है और इसे एकादशी उत्पत्ति का समय भी माना जाता है.
उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा का संबंध पौराणिक काल में मिलता है जिसके अनुसार सतयुग में एक राक्षस था जिसके पुत्र का नाम मुर था. मुर एक बहुत ही शक्तिशाली दैत्य था, उसमें बेहद पराक्रम था वह हर कार्य को कर लेने में सक्षम था. अपने बल से उसने इंद्र से लेकर यम समेत अन्य देवताओं को हरा कर उनके स्थान पर कब्जा कर लिया था. सब ओर उस राक्षस का ही शोर मचा हुआ था. ऐसे में सभी देवतागण अपनी परेशानी लेकर भगवान की शरण में पहुंचते हैं.
देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव ने उन्हें धैर्य बंधाया और कहा कि देवताओं को इस समस्या का हल श्री विष्णु से प्राप्त हो सकता है. ऎसे में देवता लोग प्रभु श्री हरि के पास जाने के लिए बढ़ते हैं. इसके बाद सभी देवता अपनी व्यथा लेकर भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे और विस्तार से उन्हें सारी बात बताई.
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देवताओं की समस्या का हल करने के लिए भगवान विष्णु मुर को पराजित करने के लिए रणभूमि में पहुंच जाते हैं. मुर और भगवान विष्णु का युद्ध दस हजार वर्षों तक चला. विष्णु जी ने अनेकों प्रहार के बाद भी दैत्य मुर नहीं हारा.
तब जब श्री हरि विश्राम हेतु बद्रिकाश्रम गुफा में चले जाते हैं वहां दैत्य मुर भी विष्णु का पीछा करते हुए उस गुफा में पहुंच जाता है.
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मुर ने भगवान पर जब प्रहार किया तो भगवान विष्णु के शरीर से एक कांतिमय रूप वाली देवी प्रकट हुईं और उन्होंने मुर राक्षस का वध किया. क्योंकि इस देवी का जन्म मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को हुआ था इसलिए उनका नाम एकादशी पड़ गया. साथ ही एकादशी के दिन उत्पन्न होने के कारण इन देवी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.