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Home ›   Blogs Hindi ›   Tulsi Mangalashtak Mantra: Difficulties in married life go away by reciting Tulsi Mangalashtak.

Tulsi Mangalashtak Mantra : तुलसी मंगलाष्टक पाठ से दूर होती है विवाह जीवन की मुश्किलें

Acharya RajRani Updated 23 Nov 2023 02:33 PM IST
Tulsi puja
Tulsi puja - फोटो : my jyotish
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कार्तिक माह एक अत्यंत ही शुभ माह होता है जब तुलसी पूजन को अत्यंत ही श्रेष्ठ माना गया है. तुलसी के पौधे को हिंदी धर्म में देवी के समान स्थान प्राप्त है. देवी तुलसी का पूजन व्यक्ति के जीवन में संकटों को दूर कर देने वाली हैं.

दांपत्य जीवन के सुख हेतु देवी तुलसी का पूजन उत्तम फल प्रदान करता है. जहां तुलसी के पौधे का प्रत्येक भाग, पत्ती, छाल, जड़, शाखा और तना दिव्य माना गया है. हर चीज में उत्तम गुण मौजूद हैं.  ऎसे में तुलसी माता का पूजन करने से भक्तों के जीवन में कोई भी परेशानी नही रहती है. 

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तुलसी पूजन और मंगलाष्टक मंत्र महत्व
तुलसी स्तुति करने से जीवन में शुभता आती है. मान्यता यह है कि जो लोग तुलसी पूजा करते हैं उन्हें जीवन में दांपत्य सुख मिलता है. शास्त्रों के अनुसाथ तुलसी को अपनी कन्या मानकर दान करते हैं, उन्हें कन्यादान का श्रेय मिलता है, जो हिंदू धर्म में एक शुभ कार्य माना गया है. तुलसी का पौधा घर के सभी वास्तु दोषों को दूर करने में मदद कर सकता है.

ऎसे में तुलसी मंगलाष्टक स्त्रोत का जाप करने से व्यक्ति को अपने जीवन में वैवाहिक जीवन से संबंधित परेशानी नहीं सताती है. तुलसी मंगलाष्टक का पाठ पवित्र मन के साथ करने से माता तुलसी का आशीर्वाद प्राप्त होता है हर प्रकार का सुख जीवन में प्राप्त होता है. 
 
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तुलसी मंगलाष्टक मंत्र (Tulsi Mangalashtak Mantra)
ॐ श्री मत्पंकजविष्टरो हरिहरौ, वायुमर्हेन्द्रोऽनलः, चन्द्रो भास्कर वित्तपाल वरुण, प्रताधिपादिग्रहाः .
प्रद्यम्नो नलकूबरौ सुरगजः, चिन्तामणिः कौस्तुभः, स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ..
गंगा गोमतिगोपतिगर्णपतिः, गोविन्दगोवधर्नौ, गीता गोमयगोरजौ गिरिसुता, गंगाधरो गौतमः .
गायत्री गरुडो गदाधरगया, गम्भीरगोदावरी, गन्धवर्ग्रहगोपगोकुलधराः, कुवर्न्तु वो मंगलम् 
नेत्राणां त्रितयं महत्पशुपतेः अग्नेस्तु पादत्रयं, तत्तद्विष्णुपदत्रयं त्रिभुवने, ख्यातं च रामत्रयम् .
गंगावाहपथत्रयं सुविमलं, वेदत्रयं ब्राह्मणम्, संध्यानां त्रितयं द्विजैरभिमतं, कुवर्न्तु वो मंगलम् .
बाल्मीकिः सनकः सनन्दनमुनिः, व्यासोवसिष्ठो भृगुः, जाबालिजर्मदग्निरत्रिजनकौ, गर्गोऽ गिरा गौतमः 
मान्धाता भरतो नृपश्च सगरो, धन्यो दिलीपो नलः, पुण्यो धमर्सुतो ययातिनहुषौ, कुवर्न्तु वो मंगलम् 
गौरी श्रीकुलदेवता च सुभगा, कद्रूसुपणार्शिवाः, सावित्री च सरस्वती च सुरभिः, सत्यव्रतारुन्धती .
स्वाहा जाम्बवती च रुक्मभगिनी, दुःस्वप्नविध्वंसिनी, वेला चाम्बुनिधेः समीनमकरा, कुवर्न्तु वो मंगलम् 
गंगा सिन्धु सरस्वती च यमुना, गोदावरी नमर्दा, कावेरी सरयू महेन्द्रतनया, चमर्ण्वती वेदिका .
शिप्रा वेत्रवती महासुरनदी, ख्याता च या गण्डकी, पूर्णाः पुण्यजलैः समुद्रसहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम् 
लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुरा, धन्वन्तरिश्चन्द्रमा, गावः कामदुघाः सुरेश्वरगजो, रम्भादिदेवांगनाः .
अश्वः सप्तमुखः सुधा हरिधनुः, शंखो विषं चाम्बुधे, रतनानीति चतुदर्श प्रतिदिनं, कुवर्न्तु वो मंगलम् 
ब्रह्मा वेदपतिः शिवः पशुपतिः, सूयोर् ग्रहाणां पतिः, शुक्रो देवपतिनर्लो नरपतिः, स्कन्दश्च सेनापतिः .
विष्णुयर्ज्ञपतियर्मः पितृपतिः, तारापतिश्चन्द्रमा, इत्येते पतयस्सुपणर्सहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम्
 
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