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Tripur Bhairavi : गुप्त नवरात्रि में देवी त्रिपुरी भैरवी पूजन से सिद्ध होंगे सभी मनोरथ

myjyotish Updated 15 Feb 2024 10:00 AM IST
Gupt Navratri
Gupt Navratri - फोटो : my jyotish

खास बातें

Tripur Bhairavi : गुप्त नवरात्रि में देवी त्रिपुरी भैरवी पूजन से सिद्ध होंगे सभी मनोरथ 

Tripur Bhairavi Sadhana : गुप्त नवरात्रों के समय पर माता की इस शक्ति का को त्रिपुर भैरवी रुप में पूजा जाता है. 
 
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Tripur Bhairavi : गुप्त नवरात्रि में देवी त्रिपुरी भैरवी पूजन से सिद्ध होंगे सभी मनोरथ 


Tripur Bhairavi Sadhana : गुप्त नवरात्रों के समय पर माता की इस शक्ति का को त्रिपुर भैरवी रुप में पूजा जाता है. देवी का पूजन एवं स्त्रोत जाप करने से सभी मनोरथों की पूर्ति होती है संभव. 

tripur bhairavi mata शास्त्रों के अनुसार माना गया है की त्रिपुर भैरवी रुप माता पार्वती जी की ही एक शक्ति हैं. देवी भैरवी रूपा हैं और भक्तों के सभी मनोकामनाओं को पूर्ण कर देने वाली होती हैं. 
शक्ति पूजा में नवरात्रि के समय पर देवी स्त्रोत एवं मंत्र का विशेष प्रभाव है. इनके जाप द्वारा सभी प्रकार के शुभ प्रभाव साधना को प्राप्त होते हैं. देवी भैरवी का पूजन गुप्त नवरात्री में विशेष होता है. इस समय माता के पूजन द्वारा भक्तों के लिए सुखों का मार्ग प्रशस्त होता है.  

गुप्त नवरात्रि का समय मंत्र साधकों के लिए यह बेहद विशेष कृपा का समय बनता है. कुंडली जागरण के साथ साथ ग्रहों के दोष भी दूर हो जाते हैं. शक्ति एवं ग्रहों को मजबूत करने. जीवन में मौजूद दोष दूर करने के लिए देवी का पूजन शुभ माना गया है. देवी दुर्गा की आराधना के लिए गुप्त नवरात्रि का पर्व बहुत ही शुभ फलदायी माना जाता है. 

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गुप्त नवरात्रि पूजा से मिलते हैं विशेष फल 

गुप्त नवरात्रि के दिन मान्यता के अनुसार देवी दुर्गा की पूजा द्वारा सभी दुखों का अंत संभव होता है. देवी कष्टों को दूर करने वाली और मनोकामनाएं पूरी करने वाली शक्ति हैं. देवी की आराधना से न केवल भक्तों के समृद्धि एवं शक्ति की प्राप्ति होती है. साथ ही मंत्र साधकों के लिए यह बेहद विशेष कृपा का समय बनता है. कुंडली में मौजूद नौ ग्रहों के दोष भी दूर हो जाते हैं. कुंडली में ग्रहों को मजबूत करने और उनके दोष दूर करने के लिए देवी का पूजन शुभ माना गया है. देवी दुर्गा की आराधना के लिए गुप्त नवरात्रि का पर्व बहुत ही शुभ फलदायी माना जाता है. 
 

भैरवी माता की पूजा से मिलता है विशेष लाभ 

गुप्त नवरात्रि के समय पर देवी स्त्रोत एवं मंत्र जाप द्वारा सभी प्रकार के शुभ फल भक्तों को प्राप्त होते हैं. देवी भैरवी का पूजन गुप्त नवरात्री में विशेष होता है. इस समय माता के पूजन द्वारा भक्तों के लिए सुखों का मार्ग प्रशस्त होता है. देवी मूल प्रकृति हैं जिनके द्वारा सृष्टि चलायमान है. माता के रूप में आद्य शक्ति माता भक्तों के लिए सुखदायनी हैं. भगवान शिव की समस्त लीलाओं में उनकी सहचरी रुप में देवी सदैव विद्यमान हैं.  

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भैरवी स्तोत्र – BHAIRAVI STOTRA

स्तुत्याऽनया त्वां त्रिपुरे स्तोष्येऽभीष्टफलाप्तये।
यया व्रजन्ति तां लक्षमीं मनुजाः सुरपूजिताम्।। 
ब्रह्मादयः स्तुतिशतैरपि सूक्ष्मरूपां।
जानन्ति नैव जगदादिमनादिमूर्त्तिम्।
तस्माद्वयं कुचनतां नवकुंकुमाभां।
स्थूलां स्तुमः सकलवांगमयमातृभूताम्।। 

सद्यः समुद्यतसहस्त्रदिवाकराभां।
विद्याक्षसूत्रवरदाभयचिन्हहस्ताम्।
नेत्रोत्पलैस्त्रिभिरलंकृतवऋपद्मां।
त्वां हारभाररुचिरां त्रिपुरे भजामः।। 

सिन्दूरपूररुचिरं कुचभारनम्रं।
जन्मान्तरेषु कृतपुण्यफलैकगम्यम्।
अन्योन्यभेदकलहाकुलमानसास्ते।
जानन्तिं किं जडधियस्तव रूप् मम्ब।। 

स्थूलां वदन्ति मुनयः श्रुतयो गृणन्ति।
सूक्ष्मां वदन्ति वचसामधिवासमन्ये।
त्वां मूलमाहुस्परे वचसामधिवासमन्ये।
मन्यामहे वयमपारकृपाम्बुराशिम्।। 

चन्द्रावतंसकलितां शरदिन्दुशुभ्रां।
पंचाशदक्षरमयीं हृदि भावयन्ति।
त्वां पुस्तकं जपवटीममृताढद्यकुम्भं।
व्याख्यांच हस्तकमलैर्द्दधतीं त्रिनेत्राम्।। 

शम्भुस्त्वमद्रितनया कलितार्द्धभागो।
विष्णुस्त्वमन्यकमलापरिबद्धदेहः।
पद्मोद्भवस्त्वमसि वागाधिवासभूमिः।
येषां क्रियाश्च जगति त्रिपुरे त्वमेव।। 

आकुंच्य वायुमवजित्य च वैरिषट्क।
मालोक्य निश्चलधियो निजनासिकाग्रम्। 
ध्यायन्ति मूघि्र्न कलितेन्दुकलावतंसं।
तद्रुपमम्ब कृति तस्तरुणार्कमित्रम्।। 

त्वं प्राप्य मन्मथरिपोर्वपुरर्द्धभागं।
सृष्टिं करोषि जगतामिति वेदवादः।
सत्यं तदद्रितनये जगदेकमात्।
र्नोचेदशेषजगतः स्थितिरेव न स्यात्।। 

पूजां विधाय कुसुमैः सुरपादपानां।
पीठे तवाम्ब कनकाचलगह्वरेषु।
गायन्ति सिद्धिवनिताः सह किन्नरीभि।
रास्वादितामृतरसारुणपद्मनेत्रा।। 

विद्युद्विलासवपुषं श्रियमुद्वहन्तीं।
यान्तीं स्ववासभवनाच्छिवराजधानीम्।
सौन्दर्यराशिकमलानि विकाशयन्तीं।
देवीं भजे हृदि परामृतसिक्तगात्राम्।। 

आनन्दजन्मभवनं भवनं श्रुतीनां।
चैतन्यमात्रतनुमम्ब तवाश्रयामि।
ब्रह्मेशविष्णुभिरुपासितपादपद्मां।
सौभाग्यजन्मवसतीं त्रिपुरे यथावत्।। 

सर्व्वार्थभावि भुवनं सृजतीन्दुरूपा।
या तद्बिर्भितत्त पुरनर्कतनुः स्वशक्त्त्या।
ब्रह्मात्मिका हरति तत् सकलं युगान्ते।
तां शारदां मनसि जातु न विस्मरामि।।

नारायणीति नरकार्णवतारिणीति।
गौरीति खेदशमनीति सरस्वतीति।
ज्ञानप्रदेति नयनत्रयभूषितेति।
त्वामद्रिराजतनये विबुधा वदन्ति।।

ये स्तुवन्ति जगन्माता श्लोकैर्द्वादशभिः क्रमात्।
त्वामनुप्राप्य वाक्सिद्धिं प्राप्नुयुस्ते परां गतिम्।।

। इति श्री त्रिपुरभैरवी स्तोत्रम् सम्पूर्णं ।।
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