खास बातें
Benefits of Ravi Pradosh सूर्य प्रदोष के दिन अष्टकम स्तोत्र का पाठ करने से सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है. इस दिन सूर्य की उपासना बहुत ही शुभ फल देनेन वाली होती है. शास्त्रों के अनुसार रविवार का समय सूर्य उपासना के लिए उत्तम होता है. सूर्य अष्टकम स्तोत्र का पाठ करने से सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है।
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Ravivar Pradosh Vrat Upay शास्त्रों के अनुसार रविवार का दिन सूर्य देव की पूजा को समर्पित है और जब इस दिन प्रदोष का समय भी मिल रहा हो तो इस दिन की शुभता और अधिक बढ़ जाती है. प्रदोष तिथि के दिन रविवर का होना सूर्य देव की पूजा के साथ इस दिन शिव पूजन के लिए उत्तम होता है. इस दिन सूर्य प्रदोष उपाय रुप में सूर्य अष्टकम स्तोत्र का पाठ करने से सूर्य प्रबल होता है और मान सम्मान की प्राप्ति होती है.
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रवि प्रदोष के दिन सूर्य उपासना
प्रदोष का समय भगवान शिव की पूजा हेतु विशेष माना गया है ऎसे में जब प्रदोष का दिन कोई विशेष दिन पर होता है तो उस दिन के देव की पूजा करने से दिन के देव की कृपा प्राप्त होती है. सूर्य देव को नौ ग्रहों का राजा, स्वास्थ्य, बुद्धि, प्रसिद्धि और समृद्धि का देवता कहा जाता है. जन्म कुंडली में सूर्य का शुभ होना सुख मान सम्मान को दिलाता है. कहा जाता है कि संसार में सूर्य देव ही ऐसे देवता हैं जो साक्षात दिखाई देते हैं. ऎसे में ज्योतिष अनुसर सूर्य उपासना को श्रेष्ठ माना गया है.
प्रदोष के दिन सूर्य उपासना से दूर होते हैं कुंडली के दोष
ज्योतिष अनुसार सूर्य आत्मा का कारक है. सूर्य देव की पूजा और अर्घ्य देने से व्यक्ति को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है. यही कारण है कि भक्त सूर्य देव को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए तरह-तरह के उपाय करते हैं. ऎसे में प्रदोष का दिन यदि रविवार के दिन हो तो सूर्य अष्टकम स्तोत्र के पाठ से सूर्य देव शीघ्र प्रसन्न होते हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जो व्यक्ति रविवार के दिन प्रदोष होने पर सूर्य अष्टकम स्तोत्र का पाठ करता है उसे सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है और वह हर तरह से परेशानियों से दूर रहता है.
सूर्य को राज्य एवं सत्ता का कारक भी माना गया है ऎसे में यदि सरकारी तंत्र में को काम करना हो या राजनीति में सफलता की इच्छा हो तो ऎसे में सूर्य उपासना बहुत ही विशेष रुप से फलिभूत होती है. सूर्य पूजा के साथ इस सूर्याष्टक का पाठ देता है चमत्कारिक लाभ.
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सूर्य अष्टकम स्तोत्र Surya Ashtakam Stotra:
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर ।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥1॥
सप्ताश्व रथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् ।
श्वेत पद्माधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥2॥
लोहितं रथमारूढं सर्वलोक पितामहम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥3॥
त्रैगुण्यश्च महाशूरं ब्रह्माविष्णु महेश्वरम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥4॥
बृहितं तेजः पुञ्ज च वायु आकाशमेव च ।
प्रभुत्वं सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥5॥
बन्धूकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम् ।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥6॥
तं सूर्यं लोककर्तारं महा तेजः प्रदीपनम् ।
महापाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥7॥
तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानप्रकाशमोक्षदम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥8॥
इति श्रीशिवप्रोक्तं सूर्याष्टकं सम्पूर्णम् ।
सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडा प्रणाशनम् ।
अपुत्रो लभते पुत्रं दारिद्रो धनवान् भवेत् ॥
अमिषं मधुपानं च यः करोति रवेर्दिने ।
सप्तजन्मभवेत् रोगि जन्मजन्म दरिद्रता ॥
स्त्री-तैल-मधु-मांसानि ये त्यजन्ति रवेर्दिने ।
न व्याधि शोक दारिद्र्यं सूर्य लोकं च गच्छति ॥