Surya Shashthi
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भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सूर्य षष्ठी व्रत मनाया जाता है. यह व्रत भगवान सूर्य देव की आराधना एवं पूजा से संबंधित है. मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव की पूजा के साथ साथ गायत्रि मंत्र का उच्चारण भी शुभ माना गया है. शास्त्रों के अनुसार, सूर्य षष्ठी के दिन भगवान सूर्य देव की पूजा करने से न सिर्फ व्यक्ति के जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं बल्कि उसका भाग्य भी चमक उठता है. ऐसे में आइए जानते हैं सूर्य षष्ठी के महत्व के बारे में.
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सभी ग्रहों में सूर्य सबसे प्रभावशाली ग्रह है. यह ऊर्जा और आत्मा का भी कारक है. यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में सूर्य मजबूत स्थिति में हो तो ऐसा व्यक्ति राजा के समान माना जाता है. सूर्य प्रधान व्यक्ति जीवन में उच्च पद और सम्मान प्राप्त करता है. सूर्य षष्ठी के दिन सूर्य देव की पूजा करने की परंपरा है. इस दिन सूर्योदय के समय सूर्य देव को जल चढ़ाने से व्यक्ति को रोगों से मुक्ति मिलती है. प्राचीन काल से ही सूर्य देव की पूजा करने की परंपरा चली आ रही है. सूर्य देव ऐसे देवता हैं जो नियमित रूप से भक्तों को साक्षात् दर्शन देते हैं. ऐसा कहा जाता है कि अगर सूर्य षष्ठी के दिन देव की पूजा में कुछ मंत्रों का जाप किया जाए तो भक्तों को दुखों से मुक्ति मिलती है और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है.
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सूर्य षष्ठी मंत्र
सूर्य षष्ठी के दिन कुछ ऐसे मंत्रों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका जाप करने से सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है. इन मंत्रों का जाप करते समय एक बात का ध्यान रखें कि इन मंत्रों का उच्चारण शुद्ध मन एवं सच्ची निष्ठा से किया जाना चाहिए. सूर्य षष्ठी के दिन इन मंत्रों में से किसी एक का जाप करना बहुत प्रभावशाली होता है.
सूर्यदेव के मंत्र
ॐ घृणिं सूर्य्य: आदित्य:
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा.
ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:
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सूर्य देव की शक्ति का उल्लेख वेदों में, पुराणों में विस्तार से किया गया है. सूर्य की उपासना सर्वदा शुभ फलदायी होती है. अत: सूर्य षष्ठी के दिन जो भी व्यक्ति सूर्यदेव की उपासना करता है वह सदा दुख एवं संताप से मुक्त रहता है. इस दिन श्रद्धालुओं द्वारा भगवान सूर्य का व्रत रखा जाता है. सूर्य प्राचीन ग्रंथों में आत्मा एवं जीवन शक्ति के साथ साथ आरोग्यकारक माने गए हैं. पुत्र प्राप्ति के लिए भी इस व्रत का महत्व अत्यधिक बताया गया है. माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस व्रत का पूर्ण रूप से पालन करता है उसकी संतान या होने वाली संतान को कभी भी कोई रोग नहीं जकड़ता और उसका व्यक्तित्व तेज से परिपूर्ण होता है.