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पंचमी तिथि या षष्ठी तिथि सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच शुरू होती है और बाद में स्कंद षष्ठी व्रत के लिए पंचमी और षष्ठी दोनों इस दिन संयुक्त हो जाती हैं. इसका उल्लेख धर्मसिंधु एवं निर्णय सिंधु में मिलता है. प्रत्येक माह में स्कंद षष्ठी का व्रत मनाया जाता है.मान्यता है कि भगवान कार्तिकेय की विधि-विधान से पूजा करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि मिलती है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को स्कंद षष्ठी व्रत मनाया जाता है. आइए जानते हैं व्रत की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में.
षष्ठी व्रत से मिलती है कष्टों से मुक्ति
हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति स्कंद षष्ठी का व्रत करता है उसे लोभ, मोह, क्रोध और अहंकार से मुक्ति मिलती है. धन, यश और कीर्ति में वृद्धि होती है. सभी शारीरिक कष्टों और रोगों से छुटकारा मिलता है. इस व्रत का पालन संतान की कुशलता के बहुत ही शुभ माना गया है.
स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व
षष्ठी के दिन भगवान मुरुगन ने सूरपदमन और उसके भाइयों तारकासुर और सिंहमुख का वध किया था. स्कंद षष्ठी का यह दिन विजय का प्रतीक है. ऐसा कहा जाता है कि भगवान मुरुगन ने अपने हथियार का उपयोग करके असुर का सिर काट दिया था. कटे हुए सिर से दो पक्षी निकले - एक मोर जो कार्तिकेय का वाहन बन गया और एक मुर्गा जो उनके ध्वज पर प्रतीक बन गया.
जन्मकुंडली ज्योतिषीय क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
स्कंद षष्ठी का व्रत करने से नि:संतान को संतान की प्राप्ति होती है. स्कंद षष्ठी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि च्यवन की आंखों की रोशनी चली गई थी, इसलिए उन्होंने स्कंद कुमार की पूजा की. व्रत के पुण्य प्रभाव से उसकी आंखों की रोशनी वापस आ गई.