Sindhara Teej: सिंधारा तीज अखंण्ड सौभाग्य की प्राप्ति का शुभ दिन जानें इससे जुड़ी रस्मों के बारे में
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सावन माह में आने वाली तीज का पर्व सौभाग्य एवं वैवाहिक सुख की प्राप्ति का विशेष समय होता है. सावन में आने वाले त्योहारों के लिहाज से तीज बेहद खास होता है. इस महीने में कई त्योहार आते हैं जिसमें से यह तीज पर्व सुहागिनों के लिए बहुत खास हो जाता है. इसी महीने में तीज का त्यौहार आता है. इस तीज को सिंधारा तीज के रुप में भी जाना जाता है. सिंधारा को सुहाग की सामग्री के रुप में भी जाना जाता है यह नव दुल्हनों के लिए बहुत खास होता है. सिंधारे पर दुल्हन के लिए ढेर सारे मिष्ठान होते हैं.
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वैवाहिक जीवन का आधार है सिंधारा तीज
तीज सावन माह के कृष्ण एवं शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है. ऐसे में जो महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं उनके लिए सुबह से ही पूजा का शुभ समय शुरू हो जाता है. तीज से एक दिन पहले सिंधारे की रस्म होती है. महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए तीज का व्रत रखती हैं. यह व्रत कुंवारी लड़कियां भी रखती हैं. मान्यता है कि इस व्रत को करने से सुखी जीवन मिलता है. सिंधारे के रुप में दांपत्य जीवन की शुभता प्राप्त होती है.
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सिंधारा क्या है?
विवाहित महिला के मायके से आने वाले श्रृंगार के सामान को सिंधारा कहा जाता है. इसमें कपड़े, खाने-पीने का सामान और सजावट का सामान शामिल है.जिन लड़कियों की शादी तय हो जाती है उनके ससुराल से भी सुहाग का सामान भेजा जाता है. शादीशुदा महिलाओं के अलावा लड़कियां भी अच्छा वर पाने के लिए यह व्रत रखती हैं. इस व्रत को करने से अच्छे पति की मनोकामना पूरी होती है. इस दिन नए कपड़े पहनती है, मेहंदी लगाती है तथा समस्त सुहाग की वस्तुओं को धारण करती हैं. सिंधारे का सामान बहुत ही शुभ एवं आशिर्वाद से भरपूर होता है. तीज से एक दिन पहले सिंधारा भेजने की प्रथा है. इस सिंधारे वस्तु पर माता-पिता का आशीर्वाद होता है इसलिए इसे शगुन रुप में दिया जाता है.
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तीज के दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. महिलाएं इस व्रत को निर्जला रखती हैं. शाम को पूजा करने के बाद पानी पीती हैं. इस त्योहार में महिलाएं सोलह सिंगार करके गौरी शंकर की पूजा करती हैं. आपको बता दें कि हरियाली तीज में सिंधारा महिलाओं के मायके से आता है.