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Home ›   Blogs Hindi ›   Shiv Katha: This story of Lord Shiva and Mother Parvati, know how Shiva took the test of Mother Parvati.

Shiv Katha: भगवान शिव और माता पार्वती की ये कथा, जानें कैसे ली शिव जी ने माता पार्वती की परीक्षा। 

Myjyotish Expert Updated 01 Mar 2022 05:05 PM IST
भगवान शिव और माता पार्वती की ये कथा, जानें कैसे ली शिव जी ने माता पार्वती की परीक्षा। 
भगवान शिव और माता पार्वती की ये कथा, जानें कैसे ली शिव जी ने माता पार्वती की परीक्षा।  - फोटो : google
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भगवान शिव और माता पार्वती की ये कथा, जानें कैसे ली शिव जी ने माता पार्वती की परीक्षा। 


महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का दिन हैं। इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था। जब से इस दिन का शिव भक्तों के लिये बड़ा ही महत्त्व रहा हैं। यह तो सभी जानते है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति रूप में पाने के लिये कितने ही कठोर तप किये थे और कितनी ही परीक्षायें दी थी तब जाकर उन्हें भगवान शंकर पति रूप में प्राप्त हुए थे। ऐसी ही एक कथा का जिक्र पौराणिक ग्रंथों में मिलता है जब भगवान शंकर ने मगरमच्छ बनकर माता पार्वती की परीक्षा ली थी। पढिये पूरी कथा, इस कथा को पढ़ने से आपका मन शांत होगा और भगवान शिव की भक्ति में ध्यान लगेगा।

एक समय की बात है माता पार्वती घोर तप कर रही थी। उनकी भक्ति और तप को देखकर देवताओं ने शिवजी से माता की मनोकामना पूरी करने के लिये कहा था। तब शंकर जी ने पार्वती जी की परीक्षा लेने सप्तऋषियों को भेजा। 

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सप्तऋषियों ने माता के सामने शंकर जी के बारे में बहुत कुछ बोला। उनके सैकड़ों अवगुण गिनाये। परंतु इन सब बातों का पार्वती जी पर कोई प्रभाव नही पड़ा। उन्हें दृढ़ निश्चय और संकल्प के साथ तप जारी रखा। जब इस सब से भी बात नही बनी तो भगवान शंकर ने खुद परीक्षा लेने की ठानी। 
भगवान शंकर प्रकट हुए और माता पार्वती को वरदान दिया। उसी समय जहाँ माता पार्वती तप कर रही थी वही तालाब के पास मगरमछ ने एक लड़के को पकड़ लिया।
लड़का बचाने के लिए शोर मचा रहा था। जैसे ही माता को लड़के की आवाज़ सुनाई दी वह उस और भागी। उन्होंने देखा मगरमच्छ लड़के को तालाब के भीतर खींच रहा था। 

तभी लड़के ने माता को देखा और लड़के ने देवी से कहा- मेरी ना तो मां है न बाप, न कोई मित्र... माता आप मेरी रक्षा करें.. . 
पार्वती जी ने कहा- हे ग्राह ! इस लडके को छोड़ दो। मगरमच्छ बोला- दिन के छठे पहर में जो मुझे मिलता है, उसे अपना आहार समझ कर स्वीकार करना, मेरा नियम है। 
ब्रह्मदेव ने दिन के छठे पहर इस लड़के को भेजा है। मैं इसे क्यों छोडूं ?
पार्वती जी ने विनती की- तुम इसे छोड़ दो। बदले में तुम्हें जो चाहिए वह मुझसे कहो। 
मगरमच्छ बोला- एक ही शर्त पर मैं इसे छोड़ सकता हूं। आपने तप करके महादेव से जो वरदान लिया, यदि उस तप का फल मुझे दे दोगी तो मैं इसे छोड़ दूंगा। 

पार्वती जी तैयार हो गईं। उन्होंने कहा- मैं अपने तप का फल तुम्हें देने को तैयार हूं लेकिन तुम इस बालक को छोड़ दो। 
मगरमच्छ ने समझाया- सोच लो देवी, जोश में आकर संकल्प मत करो। हजारों वर्षों तक जैसा तप किया है वह देवताओं के लिए भी संभव नहीं। 
उसका सारा फल इस बालक के प्राणों के बदले चला जाएगा। 
पार्वती जी ने कहा- मेरा निश्चय पक्का है। मैं तुम्हें अपने तप का फल देती हूं। तुम इसका जीवन दे दो। 
मगरमच्छ ने पार्वती जी से तपदान करने का संकल्प करवाया। तप का दान होते ही मगरमच्छ का देह तेज से चमकने लगा। 
मगर बोला- हे पार्वती, देखो तप के प्रभाव से मैं तेजस्वी बन गया हूं। तुमने जीवन भर की पूंजी एक बच्चे के लिए व्यर्थ कर दी। चाहो तो अपनी भूल सुधारने का एक मौका और दे सकता हूं। 
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पार्वती जी ने कहा- हे ग्राह ! तप तो मैं पुन: कर सकती हूं, किंतु यदि तुम इस लड़के को निगल जाते तो क्या इसका जीवन वापस मिल जाता ?
देखते ही देखते वह लड़का अदृश्य हो गया। मगरमच्छ लुप्त हो गया। 

पार्वती जी ने विचार किया की मैंने तप तो दान कर दिया है। अब पुन: तप आरंभ करती हूं। माता पार्वती ने फिर से तप करने का संकल्प लिया। यह देख भगवान शिव फिर से प्रकट हुए और उन्होंने पूछा की देवी अब आप क्या कर रही हैं। तब माता ने कहा कि मैंने अपने तप का दान कर दिया है तो अब आपको अपने पतिरूप में पाने के लिए मैं फिर से तप करूंगी। 
जब महादेव ने कहा कि उस बालक और मगरमच्छ के रूप में मैं ही था। आपने अपने तप का दान मुझे ही किया है। मैं तो बस तुम्हारी परीक्षा ले रहा था कि तुम्हारा चित्त प्राणिमात्र में सुख दुख का अनुभव करता है या नही। इसलिये अभी तुम्हे पुनः तप करने की आवश्यकता नही हैं।
यह सब जानने के बाद देवी ने महादेव को प्रणाम कर प्रसन्न मन से विदा किया।

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