खास बातें
शीतला सप्तमी का पर्व 1 अप्रैल 2024 के दिन मनाया जाएगा. इस साल शीतला सप्तमी के दिन बन रहे हैं शुभ योग जिनके प्रभाव से पूजा का मिलाग शुभफल. शीतला माता पूजन से दुर होते हैं रोग एवं मिलता है स्वास्थ्य सुख.
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Sheetala Puja शीतला माता की पूजा के दो दिन बहुत महत्वपूर्ण माने गए हैं. इसमें भी चैत्र माह में आने वाली शीतला सप्तमी बहुत विशेष मानी गई है. चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली शीतला सप्तमी के साथ अष्टमी का दिन भी विशेष होता है. आइये जानते हैं कब है शीतला सप्तमी, शीतला व्रत विधि, शीतला सप्तमी व्रत मंत्र.
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शीतला सप्तमी पूजा 2024 मुहूर्त Shitala Saptami Puja 2024 Muhurta
शीतला सप्तमी 1 अप्रैल 2024 को मनाई जाएगी.
शीतला सप्तमी पूजा मुहूर्त का समय सुबह 06:11 से शाम 06:39 तक रहेगा.
शीतला पूजन की अवधि 12 घण्टे 28 मिनट तक रहेगी.
शीतला सप्तमी तिथि 2024 समय
सप्तमी तिथि प्रारम्भ होगी 31 मार्च, 2024 को 09:30 पी एम बजे
सप्तमी तिथि समाप्त होगी 01 अप्रैल 01, 2024 को 09:09 पी एम बजे
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शीतला सप्तमी पूजन में प्रसाद का महत्व
Sheetala Puja Samagri में बासी भोजन को विशेष स्थान प्राप्त होता है. देवी शीतला को शीतल अर्थात ठंडे भोजन को भोग स्वरुप अर्पित किया जाता है. दही, ठंडा दूध, जल से भरा बर्तन, घी, आटे का दीपक, व्रत से एक रात पहले बनाया गया प्रसाद जिसमें मीठे चावल, चूरमा, नमक पारे, शक्कर पारे, पुआ, पकौड़ी, रबड़ी, मीठी रोटी, पूरी, आदि मुख्य होते हैंकामाख्या देवी शक्ति पीठ में चैत्र नवरात्रि, सर्व सुख समृद्धि के लिए करवाएं दुर्गा सप्तशती का विशेष पाठ : 09 अप्रैल -17 अप्रैल 2024 - Durga Saptashati Path Online
शीतला स्त्रोत को करने से पूर्ण होती है माता की पूजा
शीतला सप्तमी के दिन माता के पूजन मंत्र जाप के साथ शीतला स्त्रोत का पाठ करने से मिलता है विशेष लाभ. आइये जान लेते हैं शीतला स्त्रोत के बारे में : -॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
विनियोग:
ऊँ अस्य श्रीशीतला स्तोत्रस्य महादेव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शीतली देवता, लक्ष्मी बीजम्, भवानी शक्तिः, सर्वविस्फोटक निवृत्तये जपे विनियोगः ॥
ऋष्यादि-न्यासः
श्रीमहादेव ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीशीतला देवतायै नमः हृदि, लक्ष्मी (श्री) बीजाय नमः गुह्ये, भवानी शक्तये नमः पादयो, सर्व-विस्फोटक-निवृत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ॥
ध्यानः
ध्यायामि शीतलां देवीं, रासभस्थां दिगम्बराम् ।
मार्जनी-कलशोपेतां शूर्पालङ्कृत-मस्तकाम् ॥
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मन्त्रः
ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः ॥
॥ ईश्वर उवाच॥
वन्दे अहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम् ।
मार्जनी कलशोपेतां शूर्पालं कृत मस्तकाम् ॥1॥
वन्देअहं शीतलां देवीं सर्व रोग भयापहाम् ।
यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटक भयं महत् ॥2॥
शीतले शीतले चेति यो ब्रूयाद्दारपीड़ितः ।
विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति ॥3॥
यस्त्वामुदक मध्ये तु धृत्वा पूजयते नरः ।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते ॥4॥
शीतले ज्वर दग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य च ।
प्रनष्टचक्षुषः पुसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम् ॥5॥
शीतले तनुजां रोगानृणां हरसि दुस्त्यजान् ।
विस्फोटक विदीर्णानां त्वमेका अमृत वर्षिणी ॥6॥
गलगंडग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम् ।
त्वदनु ध्यान मात्रेण शीतले यान्ति संक्षयम् ॥7॥
न मन्त्रा नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते ।
त्वामेकां शीतले धात्रीं नान्यां पश्यामि देवताम् ॥8॥
॥ फल-श्रुति ॥
मृणालतन्तु सद्दशीं नाभिहृन्मध्य संस्थिताम् ।
यस्त्वां संचिन्तये द्देवि तस्य मृत्युर्न जायते ॥9॥
अष्टकं शीतला देव्या यो नरः प्रपठेत्सदा ।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते ॥10॥
श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धा भक्ति समन्वितैः ।
उपसर्ग विनाशाय परं स्वस्त्ययनं महत् ॥11॥
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः ॥12॥
रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाख नन्दनः ।
शीतला वाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः ॥13॥
एतानि खर नामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत् ।
तस्य गेहे शिशूनां च शीतला रूङ् न जायते ॥14॥
शीतला अष्टकमेवेदं न देयं यस्य कस्यचित् ।
दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धा भक्ति युताय वै ॥15॥
॥ शीतलाअष्टक स्तोत्रं ॥