खास बातें
Shani Trayodashi Vrat : शनि त्रयोदशी व्रत से दूर होती है शनि से जुड़ी हर समस्या. शनि त्रियोदशी पूजा को बेहद शुभ संयोग माना गया है. मान्यताओं के अनुसर यदि शनिवार के दिन त्रयोदशी का योग हो तब इस तिथि को शनि त्रयोदशी पूजा के रुप में जाना जाता है.
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Shani Pradosh Vrat puja vidhi: शनि दोषों से मुक्ति के लिए शनि त्रयोदशी व्रत का प्रभाव बेहद खास माना जाता है. धार्मिक विचार एवं मान्यताओं के अनुसार शनिवार के दिन त्रयोदशी तिथि का आगमन विशेष योग बनाता है. शनि त्रयोदशी के शुभ मुहूर्त में त्रयोदशी पूजा के साथ शनि व्रत करने से विशेष सुख की प्राप्ति होती है.
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हिंदू धर्म में इस व्रत का विशेष महत्व माना जाता है. त्रयोदशी का समय भगवान शिव को समर्पित है और शनि त्रयोदशी व्रत के दिन भोलेनाथ के साथ शनिदेव की भी पूजा की जाती है. जब भी त्रयोदशी के दिन शनिवार हो तो वह सर्वोत्तम समय माना जाता है. आइये जान लेते है व्रत का महत्व और इससे संबंधित विशेष बातें जिसके द्वारा दूर होंगे सभी कष्ट और मिलेगा सुख समृद्धि का वरदान
शनि त्रयोदशी व्रत करने से शनि दोष दूर हो जाता है.
शनि त्रयोदशी व्रत करते समय पूजा के बाद व्रत कथा पढ़ने या सुनने का विशेष ध्यान रखा जाता है. कथा के बिना व्रत पूरा नहीं माना जाता है. हिंदू धर्म में इस व्रत का विशेष महत्व माना जाता है. क्योंकि त्रयोदशी का समय भगवान शिव को समर्पित है और शनि त्रयोदशी व्रत के दिन भोलेनाथ के साथ शनिदेव की भी पूजा की जाती है. जब भी त्रयोदशी के दिन शनिवार हो तो वह सर्वोत्तम समय माना जाता है. इस दिन भक्त व्रत रखते हैं और विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं.
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शनिदेव की कृपा पाने के लिए इस व्रत का विशेष महत्व है. इस दिन लड़कियां और महिलाएं सुख-सौभाग्य की कामना से व्रत रखती हैं और शनि के प्रकोप से पीड़ित भक्त अगर इस दिन व्रत रखता है तो उसे शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है. यह भी कहा जाता है कि इस दिन शनि देव का व्रत करने से शनि से जुड़ी हर पीड़ा समाप्त होती है. इच्छाओं की भी पूर्ति हो जाती है. अगर भक्त शनि त्रयोदशी व्रत कर रहे हैं तो पूजा के बाद यह व्रत कथा जरूर पढ़ें.
शनि त्रयोदशी व्रत कथा
शनि त्रयोदशी की कथा आरंभ होती है प्राचीन समय से. एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी जो अपने पति की मृत्यु के बाद भीख मांगकर अपना जीवन यापन करती थी. अपने नियमित काम को करते हुए कई वर्ष व्यतीत हो गए थे किंतु एक दिन जब वह भीख मांगकर लौट रही थी तो रास्ते में उसे दो बच्चे दिखे, जिन्हें वह अपने घर ले आई.
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जब दोनों बच्चे बड़े हो गए तो ब्राह्मणी दोनों बच्चों को ऋषि शांडिल्य के आश्रम में ले गई. जहां ऋषि ने अपनी योग साधना के बल से बच्चों के बारे में पता लगाया और कहा कि ये दोनों बच्चे विदर्भ साम्राज्य के राजकुमार हैं. राजा गंधर्भ के आक्रमण के कारण उनके पिता को अपना राज्य खोना पड़ा.तब ऋषि ने कहा की अगर इस संकट से मुक्त होना चाहते हैं तो शनि त्रयोदशी के दिन व्रत और पूजा करें.
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ब्राह्मणी और बालकों ने विधि-विधान से व्रत किया. जिससे उसकी सारी परेशानियाँ ख़त्म हो गईं. दोबारा राजगद्दी पाने का कारण शनि त्रयोदशी व्रत था, जिसके प्रभाव से उन्हें जीवन में धन और सुख की प्राप्ति हुई.