खास बातें
Shanidev : जयेष्ठ माह की अमावस्या को शनि देव के जन्म से जोड़ा गया है। शनि देव का तेज इतना तीव्र रहा की जन्म लेते ही उनके कारण पिता सूर्य देव काले पड़ने लगते हैं। शनि की शक्ति के आगे सूर्य देव का भी तेज हो जाता है कम।
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Shanidev : जयेष्ठ माह की अमावस्या को शनि देव के जन्म से जोड़ा गया है। शनि देव का तेज इतना तीव्र रहा की जन्म लेते ही उनके कारण पिता सूर्य देव काले पड़ने लगते हैं। शनि की शक्ति के आगे सूर्य देव का भी तेज हो जाता है कम।
Shani Jayanti Katha: शास्त्रों में शनि देव का जन्म और उनके जीवन की गाथा बहुत ही संघर्षों की स्थिति को दिखाती है और साधारण मनुष्य भी जब शनि की दशा या प्रभाव में होता है तो उसी तरह के संघर्ष उसके जीवन में आते हैं। आइये आज शनि जयंती पर जाने भगवान शनि देव का संक्षिप्त वर्णन
शनि देव हैं कर्मफलदाता
शनि देव को सूर्य देव का पुत्र और कर्मफल दाता माना जाता है। ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को शनि देव का जन्म हुआ था और इसी दिन शनि जयंती मनाई जाती है। मान्यता है कि शनि जयंती पर शनि देव की पूजा करने से जीवन में शुभता का आगमन होता है।व्यक्ति को आने वाले कष्टों और बाधाओं से मुक्ति मिलती है। ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को शनि देव का जन्म हुआ था लेकिन इस दिन का संबंध भी काफी विशेष है। शनि जन्म समय की इस तिथि को शनि जयंती के रुप में मनाते। शनि जयंती के दिन आइए जानते हैं इससे जुड़ी कथा
शनि जयंती कथा
धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है कि ग्रहों के देवता सूर्य का विवाह राजा दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ था और उनकी तीन संतानें थीं जिसमें से मनु, यमराज पुत्र और यमुना पुत्री थीं। एक बार संज्ञा ने अपने पिता दक्ष को सूर्य के तेज से होने वाली परेशानी के बारे में बताया, लेकिन पिता ने कहा कि वह सूर्य की पत्नी हैं और उन्हें अपने पति की भलाई की भावना के साथ रहना चाहिए। इसके बाद संज्ञा ने अपने तप बल से अपनी छाया को प्रकट किया और उसका नाम संवरणा रखा।संज्ञा की छाया से हुआ शनि का जन्म
सूर्य के पास वह छाया को छोड़ चली गईं और छाया से शनिदेव का जन्म हुआ। शनिदेव का रंग बहुत ही काला था। जब सूर्य देव ने अपने पुत्र को देखा तो उनका रंग भी शनि देव की दृष्टि से काला पड़ गया तब सूर्यदेव का शनि देव के प्रति स्नेह भी कुछ कम हो जाता है किंतु संतान के प्रति स्नेह एक पिता से विमुख नहीं होता है।एक अन्य कथा के अनुसार शनि के जन्म समय के बहुत समय के बाद जब सूर्य देव पता चला कि छाया उनकी संज्ञा नहीं है, तो उन्होंने शनिदेव को अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया। इससे शनिदेव क्रोधित हो गए और उनकी दृष्टि सूर्यदेव पर पड़ी, जिससे सूर्यदेव का रंग काला पड़ गया।
इससे संसार में अंधकार फैलने लगा। परेशान देवी-देवताओं ने भगवान शिव की शरण ली। तब भगवान शिव ने सूर्यदेव से संवरण से क्षमा मांगने को कहा। इस तरह सूर्यदेव ने संवरण से क्षमा मांगी और शनिदेव के क्रोध से मुक्त हुए। इसके बाद सूर्यदेव अपने स्वरूप में वापस आ गए और धरती फिर से प्रकाशवान हो गई।
शनि स्तोत्र
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:।।
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नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:।।
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