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Sawan special : नीलमणि का अद्भुत शिवलिंग, जानें इसकी स्थापना से जुड़ी मान्यताएं

my jyotish expert Updated 18 Jul 2023 01:28 PM IST
Sawan special : नीलमणि का अद्भुत शिवलिंग, जानें इसकी स्थापना से जुड़ी मान्यताएं
Sawan special : नीलमणि का अद्भुत शिवलिंग, जानें इसकी स्थापना से जुड़ी मान्यताएं - फोटो : google
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सावन माह के दौरान देश भर के शिव मंदिरों में भक्तों की शृद्धा का रंग चारों ओर बिखरा हुआ दिखाई देता है. सावन का सोमवार हो या फिर अन्य दिन सभी पर भक्त शिव मंदिरों में पहुंचे होते हैं. इसी शिव मंदिर में बाबा दूधेश्वर नाथ मंदिर भी भक्तों की आस्था का बड़ा केन्द्र रहा है. इस मंदिर पर सावन के समय में भक्तों की भारी भीड़ देखी जा सकती है. कांवरिये भी यहां कांवर लाकर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं. बाबा दूधेश्वर नाथ मंदिर को बिहार का देवघर भी कहा जाता है.  आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में कुछ खास बातें और जाने इसकी विशेषता को विस्तार से: - 

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बिहार का देवघर कहे जाने वाले बाबा दूधेश्वर नाथ मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ सावन के समय पर विशेष रुप से देखी जा सकती है. देवकुंड नगर में हर-हर महादेव, बम-बम भोले और जय बाबा दुधेश्वर नाथ के जयकारे गूंजते रहते हैं. भक्त बाबा की पूजा-अर्चना कर मनवांछित फल की कामना करते हैं. कांवरिए भी यहां पैदल आते हैं और बाबा दूधेश्वर नाथ महादेव का जलाभिषेक करते हैं. कहा जाता है कि पहले बाबा बैद्यनाथ की नगरी को बिहार के देवघर का दर्जा प्राप्त था, लेकिन बाद में देवकुंड को बिहार के देवघर का दर्जा मिल गया लेकिन भक्त आज भी इस स्थान को देवघर मानते हैं.

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भगवान श्रीराम ने की थी शिवलिंग की स्थापना
बाबा दूधेश्वर नाथ मंदिर का संबंध भगवान श्रीराम से भी माना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, लंका विजय के बाद अयोध्या लौटते समय भगवान श्रीराम माता सीता के साथ पुष्पक विमान से यहीं उतरे थे. उन्होंने यहां नीलम पत्थर का नीले रंग का शिवलिंग स्थापित कर भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया था. भगवान श्रीराम द्वारा शिवलिंग का दूध से अभिषेक करने के बाद यहां के शिवबाबा दूधेश्वरनाथ के रूप में प्रसिद्ध हुए. बाबा की नगरी देवकुंड धाम काफी प्रसिद्ध है. 

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मंदिर का निर्माण विश्वकर्मा ने किया 
मंदिर के निर्माण के संबंध में मान्यता है कि औरंगाबाद और उमगा के देवकुंड धाम के बाद इस मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने एक ही रात में किया था.  कहा जाता है कि महर्षि च्यवन ने इस स्थान को तपोभूमि बनाया और वर्षों तक तपस्या की थी. आज भी यहां कुंड की अग्नि के प्रज्जवलित होने का पता चलता है. मान्यता है कि सावन के महीने में यहां कांवड़ लाने और शिव का जलाभिषेक करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं.

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