Reiki Healing Technique
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रेकी एक ऎसी विद्या है जो स्पर्श और ऊर्जा का एक अदभुत संगम है. रेकी उर्जाओं का वह मिश्रण है जो जीवन को अनेक रुपों में प्रभावित करने की क्षमता रखती है. यह किसी एक हिस्से को प्रभावित नही करती है अपितु रेकी द्वारा हर प्रकार की समस्याओं को हल करने की शक्ति प्राप्त होती है. रेकी की खोज के विषय में कहा जाता है कि सबसे पहले जापान के मिकाओ उसुई, ने रेकी की खोज की थी. वह एक संत ओर उपचारक भी थे और इसे आध्यात्मिक उपचार चिकित्सा के रूप में उपयोग किया.कुछ मान्यताओं के आधार पर यह पद्धिति भारत से निकल कर तिब्बत चीन ओर फिर जापान तक पहुंची जहां मिकाओ उसुई ने इसे सबके सामने रखा.
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रेकी का उपयोग स्वास्थ्य सुधार के साथ साथ मनोविकारों से मुक्ति पाने हेतु किया जाता है. रेकी का उपयोग जीवन में आर्थिक समृद्धि के साथ साथ जीवन को खुशहाल बनाने हेतु भी किया जाता है. यह नकारात्मकता को दूर करके जीवन में सकारात्मका को प्रवाहित करने वाली तकनीक के रुप में काम करती है. शरीर में मौजूद सातों चक्रों को शुद्ध करने तथा साधना के स्तर को कुंडली जागरण तक पहुंचाने में इस रेकी ऊर्जा का बेहद विशेष योगदान माना गया है.
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रेकी का उपयोग अनेक क्षेत्रों में
रेकी को हीलिंग तकनीक में बहुत उच्च स्तर की ऊर्जा के रुप में देखा जाता है. ऊर्जाओं के प्रवाह को आमंत्रित करते हुए प्रार्थना एवं समर्पण भाव के द्वारा रेकी उपचार की सशक्त तकनीक है. इसे स्पर्श के रुप में लाभ देने वाली तकनीक कहा जाता है तथा ऊर्जाओं के द्वारा व्यक्ति की समस्त परेशानियों को हल करने हेतु यह तकनीक बहुत कारगर सिद्ध होती देखी जा सकती है.
रेकी का उपयोग हर प्रकार की समस्याओं से निजात पाने हेतु किया जाता है. यह एक ऎसी विद्या है जो चमत्कारिक रुप से अपना कार्य करती है. रेकी का उपयोग तनाव कम करने के साथ मानसिक शांति को पाने के लिए श्रेष्ठ माना गया है. रेकी को जापान एवं चाइना की विद्या के रुप में अधिक जाना गया है लेकिन जब बात आती है भारतीय संस्कृति में रेकी की महत्ता को समझने की तो ऋषि मुनियों के लिए यह विद्या उनके भौतिक एवं आध्यात्मिक जगत को समझने का मुख्य आधार रही. अपनी चेतना के विकास के साथ साथ सृष्टि के कल्याण हेतु इसे उपयोग में लाया गया.
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रेकी ऊर्जा द्वारा चक्रों का शुद्धिकरण
हमारे शरीर में मौजूद सात चक्र जीवन की संरचना के आधार कहे जाते हैं. यह चक्र मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र तथा सहस्त्रार चक्र के रुप में शरीर में विराजमान हैं. यही चक्र जब जागृत होते हैं तो मनुष्य कुंडलिनी जागरण की शक्ति को पाता है. यह जागरण उसकी आध्यात्मिक यात्रा की परकाष्ठा का भी होता है. अत: इन चक्रों की शुद्धि एवं इनके जागरण के लिए भी रेकी उर्जा बहुत उपयोगी सिद्ध होती है. रेकी ऊर्जा वह विद्या है जो यूनिवर्स अर्थात ब्रह्मांड में प्रवाहित होने वाली ऊर्जाओं के द्वारा जीवन को सुखमय एवं उचित मार्गदर्शन देने का कार्य करती है.