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Pradosh Vrat: जानिए प्रदोष व्रत की कथा और पूजा विधि के बारे में 

Myjyotish Expert Updated 28 Apr 2022 12:26 PM IST
जानिए प्रदोष व्रत की कथा और पूजा विधि के बारे में 
जानिए प्रदोष व्रत की कथा और पूजा विधि के बारे में  - फोटो : Google
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जानिए प्रदोष व्रत की कथा और पूजा विधि के बारे में 


हिन्दू धर्म में त्रियोदशी तिथि भगवान शंकर को समर्पित है। हर माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस बार वैशाख माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 28 अप्रैल दिन गुरुवार को सुबह 12:23 मिनट से आरंभ होकर 29 अप्रैल दिन शुक्रवार को सुबह 12:26 पर समाप्त होगी। इसलिए इस बार प्रदोष व्रत गुरुवार के दिन रखा जाएगा जिसके कारण यह गुरु प्रदोष व्रत कहलायेगा। आज के दिन भगवान शंकर की पूजा करने के लिए सबसे उत्तम समय शाम को 06:54 मिनट से लेकर रात्रि के 09:04 मिनट तक रहेगा।

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अब जानते है पूजा विधि की कैसे करें आज के दिन भगवान शंकर की पूजा। आपको सबसे पहले बता दे कि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर की पूजा प्रदोष काल मे होती है। जो कि सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और 45 मिनट के बाद का समय होता है। आज के दिन इस समय भगवान शंकर का अभिषेक करें और उन्हें बेलपत्र भी अर्पित करें। इसके बाद भगवान शंकर को समर्पित मंत्रों का जप करें और प्रदोष व्रत की कथा सुने उसके बाद भगवान शंकर और माता पार्वती की आरती करे। जो भोग आपने भगवान को लगाया था उसे सबको प्रसाद रूप में बाट दें।

अब जानते है कि क्या है गुरु प्रदोष व्रत कथा जिसे आज के दिन जरूर सुन्ना या पढ़ना चाहिए। पौराणिक ग्रंथों में मिलने वाली कथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मण, उसका बेटा और पत्नी रहती थी। ब्राह्मण की मृत्यु के बाद ब्राह्मणी अपना और अपने बेटे का भरण पोषण करने के लिए अपने बेटे के साथ सुबह ही भीख मांगने निकल पड़ती थी। पूरे दिन उसे भीख में जो कोई कुछ भी दे देता उससे वह अपना और अपने बेटे का गुज़र बसर कर रही थी क्योंकि उसके पास कोई और सहारा भी नही था। एक दिन जब ब्राह्मणी घर लौट रही थी उसे रास्ते मे एक लड़का करहता हुआ दिखा उसने देखा तो वह काफी चोटिल था।

ब्राह्मणी को उसकी हालत पर दया आ गयी और वह उसे अपने साथ अपने घर ले आई। वह लड़का और कोई नहीं विदर्भ का राजकुमार था। शत्रुओं ने आक्रमण कर उसके पिता को बंधी बना लिया था और उसके राज्य पर राज करने लगे थे इसलिए उसकी यह स्थिति हो गयी थी। जैसे जैसे समय बीतता गया राजकुमार और ब्राह्मण पुत्र दोनों एक साथ ब्राह्मणी के घर पर रहने लगे। फिर एक एक दिन एक गंधर्व कन्या जिसका नाम अंशुमति था उसने राजकुमार को देखा और उस पर मोहित हो गयी थी। वह राजकुमार पर इस कदर मोहित हुई थी अगले ही दिन अपने माता पिता को राजकुमार से मिलाने ले आयी। उन्हें भी राजकुमार बहुत पसंद आया। कुछ दिन बाद कन्या के माता पिता के स्वप्न में भगवान शंकर ने दोनों के विवाह का आदेश दिया और उसके अनुसार कुछ दिन बाद दोनों का विवाह करा दिया गया।  

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गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने अपना राज्य वापस प्राप्त कर अपने पिता को आज़ाद  करा लिया। राजकुमार ने ब्राह्मण पुत्र को अपना प्रधानमंत्री घोषित किया और उसके बाद ब्राह्मणी और उसके पुत्र के दिन बदल गए। यह सब भगवान शंकर के आशीर्वाद से हुआ था। क्योंकि ब्राह्मणी भगवान शंकर की पूजा करती थी और प्रदोष व्रत रखती थी। भक्त इसी कामना के साथ प्रदोष व्रत रखते है जैसे ब्राह्मणी के दिन बदले ऐसे ही उनके भी बदल जाये। जो लोग प्रदोष व्रत रखते है भगवान शंकर उनके दिन फेर देते है।

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