Pradosh Vrat
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भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि होने के कारण प्रदोष व्रत मनाया जाएगा. इस व्रत में भगवान शिव की पूजा करने का विधान है. इस व्रत को करने से घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है. धार्मिक ग्रंथों में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई व्रतों का वर्णन किया गया है. ऐसा ही एक व्रत है प्रदोष. यह व्रत हर माह के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है. यानी एक महीने में दो बार और साल में इसी अनुसार होता है. यह तिथि जिस भी दिन पड़ती है, उसी के अनुसार इसका नाम हो जाता है, जैसे इस बार प्रदोष व्रत मंगलवार को रखा जाएगा तो इसे भौम प्रदोष कहा जाएगा. इसी तरह यदि यह रविवार को होता है तो इसे रवि प्रदोष कहा जाता है और यदि यह शनिवार को होता है तो इसे शनि प्रदोष कहा जाता है.
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प्रदोष व्रत का लाभ और उसकी आवश्यकता
वैसे तो प्रदोष व्रत हर किसी को करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा हम पर बनी रहती है. जिससे हमारे परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है. लेकिन जिन लोगों की कुंडली में चंद्रमा अशुभ स्थिति में हो, उन्हें यह व्रत विशेष रूप से करना चाहिए. ऐसा करने से उन्हें चंद्रमा से संबंधित शुभ फल प्राप्त होते हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा अशुभ स्थिति में होता है उसे कई मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
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प्रदोष से मिलती है चंद्रमा की शुभता
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा के पुत्र दक्ष प्रजापति ने क्रोधित होकर चंद्रमा को क्षय रोग होने का श्राप दे दिया. इस श्राप के प्रभाव से चंद्रदेव की आभा कम होने लगी तब इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए चंद्रमा ने भगवान शिव की आराधना की. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने प्रसन्न होकर चंद्रमा को श्राप से मुक्त कर दिया और उसे अपने मस्तक पर धारण कर लिया.जब भगवान शिव ने चंद्रमा को श्राप से मुक्त किया, उस दिन प्रदोष तिथि थी. इसीलिए कहा जाता है कि प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं. इसलिए जिन लोगों की कुंडली में चंद्रमा अशुभ स्थिति में है उन्हें प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए.इसी कारण प्रदोष व्रत को करना बहुत शुभ होता है चंद्रमा के शुभ गुण भी जीवन में प्राप्त होते हैं.