Pithori Amavasya
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भाद्रपद माह में पड़ने वाली अमावस्या तिथि को पिठोरी अमावस्या के रूप में मनाया जाता है. पिठोरी इस अमावस्या के दौरान पितरों की शांति के लिए धार्मिक अनुष्ठानकिए जाते हैं. पिठोरी अमावस्या के दिन धार्मिक पूजा-पाठ, व्रत और दान का प्रभाव बहुत शुभ होता है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है तथा लोग अपने पूर्वजों की शांति के लिए इस दिन पितृ शांति से जुड़े कार्य भी करते हैं. आइए जानते हैं पिठोरी अमावस्या से जुड़ी खास बातें और पूजा का विशेष फल.
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पिठोरी अमावस्या पर करें पितृ शांति
पिठोरी अमावस्या के दिन पितरों की शांति के लिए पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन देवी-देवताओं की पूजा करने के साथ-साथ श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण आदि कार्य करने से सुख और शांति मिलती है. पिठोरी अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है. सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तांबे के लोटे का उपयोग किया जाता है और काले तिल और जल के साथ फूल और चावल भी चढ़ाए जाते हैं. ऎसा करने से पितरों को सुख प्राप्त होता है.
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पिठोरी अमावस्या पूजा समय
पंचांग के अनुसार इस वर्ष भाद्रपद अमावस्या 14 सितंबर को सुबह 4:48 बजे शुरू होगी और अमावस्या तिथि 15 सितंबर को सुबह 7:09 बजे समाप्त होगी. जब भादो अमावस्या आती है तो व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है. इस दिन साध्य नामक शुभ योग और शुक्ल नामक शुभ योग प्राप्त होगा. भाद्रपद अमावस्या का समय 14 सितंबर को रहेगा जिसमें कुशग्रहणी और पिठोरी अमावस्या का त्योहार मनाया जाएगा.
15 सितंबर को अमावस्या के दिन किया जाने वाला स्नान दान-पुण्य के लिए बेहद खास रहेगा. इस दिन देवी दुर्गा की पूजा की जाती है. महिलाओं के लिए इस व्रत का विशेष महत्व है, इस दिन अमावस्या का व्रत करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और संतान सुख की प्राप्ति होती है. इस दिन कुशा एकत्रित करने का भी विशेष नियम है.
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भाद्रपद अमावस्या के दिन दान-पुण्य का कार्य करना बहुत शुभ माना जाता है. सर्पदोष से मुक्ति के लिए भी इस दिन पूजा करना बहुत लाभकारी होता है. भाद्रपद अमावस्या का समय पितरों संबंधी दोषों से मुक्ति पाने के लिए भी विशेष है.