इस समय पर देवी पूजन के समय संतान सुख प्राप्ति एवं शुभ फलों की प्राप्ति का समय होता है. इस समय साधक को व्रत का पालन करना चाहिए और साथ में देवी छिन्नमस्ता का पूजन भी विशेष रुप से होता है. इस समय पर कार्तिकेय की मां स्कंदमाता की पूजा करना शुभदायक होता है.
जन्मकुंडली ज्योतिषीय क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
नवरात्रि स्कंदमाता पूजन
गुप्त नवरात्रि के नौ दिवसीय उत्सव के दौरान माँ दुर्गा के विभिन्न अलग-अलग अवतारों की पूजा होती है. नवरात्रि का पाँचवाँ दिन देवी स्कंद माता को समर्पित है तथा देवी छिन्नमस्तिका का पूजन होता है. इस समय पर साधक जीवन में शक्ति एवं समृद्धि को पाता है. परेशानियों के मुद्दों को दूर करने के लिए उनकी पूजा करते हैं. स्कंद भगवान कार्तिकेय का दूसरा नाम है उनकी माता स्कंदमाता कहलाती हैं.
तारकासुर ने भगवान ब्रह्मा से वर्षों तक कठोर प्रार्थना की और अमर होने का वरदान मांगा, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया. लेकिन तारकासुर ने भगवान शिव के पुत्र से मृत्यु मांगी, क्योंकि उनका मानना था कि भगवान शिव ने तपस्या की थी और वह कभी भी मां पार्वती से विवाह नहीं करेंगे. भगवान ब्रह्मा ने उन्हें मनोवांछित वरदान दिया.
किंतु भगवान विष्णु द्वारा माँ पार्वती और भगवान शिव का विवाह संभव हो पाया और भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ. कार्तिकेय द्वारा तारकासुर का वध हुआ और तभी से मां पार्वती को स्कंदमाता के नाम से भी जाना जाता है.
गुप्त नवरात्रि पांचवें दिन की पूजा का महत्व
गुप्त नवरात्रि के पांचवें दिन प्रात:काल उठ कर स्नान इत्यादि के पश्चात साफ वस्त्र धारण करके मंदिर स्थल पर माता को नमस्कार करते हुए पूजा का आरंभ होता है. साफ-सफाई करें और गंगाजल छिड़कें. पूजा की शुरुआत देसी घी का दीया जलाकर कर फूल, पान, इलाइची, दो लौंग और सुपारी अर्पित करनी चहिए. दुर्गा चालीसा, स्कंदमाता मंत्र और दुर्गा सप्तशती का पाठ करते भोग लगाएं और व्रत को संपूर्ण करना चाहिए.
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नवरात्रि के पंचम दिन का समय परिवार एवं संतान की कुशलता के लिए बहुत ही शुभ माना गया है. देवी पूजन द्वारा धन धान्य की प्राप्ति एवं जीवन में सुख समृद्धि का आगमन होता है. इस दिन छोटी कन्याओं को देवी का स्वरुप मानकर आशीर्वाद लेने से जीवन बाधाएं समाप्त हो जाती हैं.