मुंडेन ज्योतिष इसी तथ्य को समझने की ओर महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. मुण्डेन जिसे हम मेदीनी ज्योतिष के नाम से भी जानते हैं इसके द्वारा हमें काफी हद तक प्राकृतिक आपदाओं एवं मौसम से संबंधित अनेकों बदलावों को पूर्व में ही जान सकते हैं. ज्योतिष में प्राकृतिक आपदाओं के विषय को समझने के लिए कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को बताया गया है. जिसमें ग्रहों की युति उनकी अंशात्मक स्थिति एवं ग्रहण इत्यादि का प्रभाव जैसे तथ्य सामने रखते हुए घटनाओं को समझने की कोशिश की जाती है.
यहां मैं सबसे पहले ऎसी ही कुछ तथ्य आपके समक्ष प्रस्तुत करने जा रही हूं जिनके द्वारा प्राकृत्तिक आपदाओं के रहस्य को समझने में काफी मदद मिल सकती है. जो इस प्रकार हैं. प्राकृतिक आपदाओं में शनि, राहु-केतु, मंगल, गुरू जैसे ग्रहों की भूमिका बहुत मुख्य होती है
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मंगल जब भी पृथ्वी के निकट आता है तब तापमान में बढ़ोत्तरी जैसी समस्या के चलते मौसम में बदलाव देखने को मिलते हैं. जंगलों में आग लगने की घटनाएं भी बढ़ जाती हैं.
सूर्य पर जब धब्बे दिखाई देते हैं तो उस समय पानी दूषित होकर कीचड़नुमा हो सकता है और रेतीले तूफानों का प्रकोप भी बढता देखा जा सकता है. यदि किसी वर्ष सूर्य और शनि विशेषतौर पर कर्क और मकर राशि में हों तो वह समय जल से संबंधित विकट समस्या उत्पन्न करता है.
बुध के राशि परिवर्तन समय के दौरान मौसम में बदलाव होना सामान्य बात है वहीं बुध के नक्षत्र आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्रों में अत्यधिक दुखद घटनाओं के होने की स्थिति भी देखी गई है.
मौसम की स्थिति निर्धारण में सूर्य और बृहस्पति की भूमिका निर्णायक रहती है. बृहस्पति का मकर राशि में प्रवेश वातावरण में अवरोध की स्थिति लाता है.
जब भी शनि ग्रह मंगल, राहु-केतु के नजदीक से गुजरता है तो उस समय भूकंप और प्राकृत्तिक आपदाओं की स्थिति देखी जा सकती है.
राहु जब भी शनि या मंगल से युति करता और 6,8,12 में संबंध बनाता है तो स्थिति अनियंत्रित होती देखी जा सकती है.
ग्रहण से 6 माह पहले और 6 माह बाद तक इसके बूरे प्रभाव देखने को मिलते हैं. ग्रहण का प्रभाव उन देशों पर ज्यादा देखा जाता है जहां यह दृष्ट होता है. यदि सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण 14 दिनों के अंतरला में ही दृष्ट हो जाएं तो यह स्थिति बेहद चिंताजनक होती है.
रोहीणी नक्षत्र में शनि का गोचर रोहिणी शकट भेदन योग बनाता है जिसके कारण आकाल-भूखमरी जैसी प्राकृत्तिक आपदाओं का प्रभाव पड़ता है. और ये स्थिति प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, 1942-1943 के समय के दौरान बंगाल में अकाल का पडना के रूप में देखी जा सकती है. ऎसी ही अनेकों घटनाएं हम मेदिनी ज्योतिष के जरिये से समझ सकते हैं. मेदिनी ज्योतिष एक अत्यंत ही गणनात्मक प्रक्रिया है जिसमें छोटी से छोटी गणनाओं पर भी विशेष निगाह रखने की आवश्यकता होती है. इसी संदर्भ में हम जब सूर्य के आर्द्रा नक्षत्र प्रवेश की बात होती है तो यह मेदिनी का ही एक विषय भी बनता है और मौसम-वातावरण के संदर्भ में विभिन्न बातें दर्शाता है.
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