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Home ›   Blogs Hindi ›   Mahatara Jayanti: Chant this sutra for freedom from troubles.

Mahatara Jayanti : महातारा जयंती पर करें इस एक स्त्रोत का पाठ नहीं सताएगा कोई संकट

Acharya Rajrani Sharma Updated 16 Apr 2024 12:10 PM IST
Mahatara Jayanti
Mahatara Jayanti - फोटो : myjyotish

खास बातें

Goddess Mahatara : माँ महतारा दस महाविद्याओं में से एक महाशक्ति का रुप मानी गई हैं. माता के पूजन द्वारा भक्तों को हर प्रकार के भय से मुक्ति प्राप्त होती है. माँ तारा का स्वरुप उग्र और आक्रामक होकर दुष्टों का संहार करने वाला होता है.  
 
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Goddess Mahatara : माँ महतारा दस महाविद्याओं में से एक महाशक्ति का रुप मानी गई हैं. माता के पूजन द्वारा भक्तों को हर प्रकार के भय से मुक्ति प्राप्त होती है. माँ तारा का स्वरुप उग्र और आक्रामक होकर दुष्टों का संहार करने वाला होता है.  

Mahatara Jayanti Puja : माँ तारा की पूजा भक्त के लिए बेहद विशेष समय होता है. चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महतारा जयंती मनाई जाती है. माँ ब्रह्माण्ड के समस्त पिंडों की स्वामिनी है. सृष्टि की रचना से पहले माँ काली का आधिपत्य रहा है माता के आशिर्वाद से ही सृष्टि चलायमान है. 

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चैत्र माह में माता तारा जयंती 

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में महतारा जयंती मनाई जाती है. देवी तारा का प्रभाव सृष्टि को प्रकाशित है. माँ महतारा दस महाविद्याओं में शक्ति का उग्र और आक्रामक रूप हैं. माँ ब्रह्माण्ड के समस्त पिंडों की स्वामिनी है. सृष्टि की रचना से पहले माँ काली का आधिपत्य था. घोर अंधकार में जब प्रकाश की किरण फूटी तो उसे शक्ति माता तारा कहा गया. तंत्र साधना की यह देवी अत्यंत शक्तिशाली, ऊर्जावान और शीघ्र परिणाम देने वाली हैं.

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महातारा जयंती पूजा से मिलेगा सुख समृद्धि का वरदान 

देवी तारा दशमहाविद्याओं में दूसरे स्थान पर आती हैं. इन दस महाविद्याओं में इस संसार का संपूर्ण ज्ञान और शक्ति है. उनकी साधना ही वह माँ है जो उन्हें भावनाओं के सागर से बचाती है. इनका अलग-अलग रूप में ध्यान करने से अलग-अलग विषयों की प्राप्ति होती है. शास्त्रों के अनुसार माता का पूजन करने से पुरुषार्थ में वृद्धि होती है और शत्रुओं का नाश होता है. माता के  इस स्वरूप की साधना आपको हर प्रकार के रोग से मुक्ति दिलाती है. इस दिन तंत्र-मंत्र से पूजा करने से देवी प्रसन्न होती हैं. देवी तारा शक्ति स्वरूपा हैं. जब उनका कोई भक्त निराशा से घिरा होता है तो मां उनकी मदद के लिए जरूर आती हैं.

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महातारा मंत्र एवं स्त्रोत से मिलती है संकट से मुक्ति

देवी पूजन से सभी प्रका के सुख प्राप्त होते हैं. अगर रोगोम से मुक्ति पाना चाहते हैं अथवा सुंदर, निरोगी शरीर और परम सुख पाना चाहते हैं तो महातारा जयंती के दिन स्नान आदि के बाद साफ कपड़े पहनकर मां  के मंत्र का जाप करना चाहिए. अगर आपको किसी बात का डर है या आप कोई नया काम शुरू करने से डर रहे हैं तो अपने डर को दूर करने के लिए माता के कवच एवं स्त्रोत के मंत्र का जाप करना चाहिए.

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माँ तारा स्तोत्र Maa Tara Devi Stotram

मातर्नीलसरस्वति प्रणमतां सौभाग्यसम्पत्प्रदे प्रत्यालीढपदस्थिते शवहृदि स्मेराननाम्भोरुहे ।
फुल्लेन्दीवरलोचनत्रययुते कर्तीकपालोत्पले खड्गं चादधती त्वमेव शरणं त्वामीश्वरीमाश्रये॥ १॥
वाचामीश्वरि भक्तकल्पलतिके सर्वार्थसिद्धीश्वरि सद्यः प्राकृतगद्यपद्यरचनासर्वार्थसिद्धिप्रदे।
नीलेन्दीवरलोचनत्रययुते कारुण्यवारांनिधे सौभाग्यामृतवर्षणेन कृपया सिञ्च त्वमस्मादृशम्॥ २॥
खर्वे गर्वसमहपूरिततनो सर्पादिभूषोज्ज्वले व्याघ्रत्वक्परिवीतसुन्दरकटिव्याधूतघण्टाङ्किते।
सद्यःकृत्तगलद्रजःपरिलसन्मुण्डद्वयीमूर्धज ग्रन्थिश्रेणिनृमुण्डदामललिते भीमे भयं नाशय॥ ३॥
मायानङ्गविकाररूपललनाबिन्द्वर्धचन्द्रात्मिकेहुंफट्कारमयि त्वमेव शरणं मन्त्रात्मिके मादृशः।
मूर्तिस्ते जननि त्रिधामघटिता स्थूलातिसूक्ष्मा परावेदनां नहि गोचरा कथमपि प्राप्तां नु तामाश्रये॥ ४॥
त्वत्पादाम्बुजसेवया सुकृतिनो गच्छन्ति सायुज्यतांतस्य श्रीपरमेश्वरी त्रिनयनब्रह्मादिसौम्यात्मनः।
संसाराम्बुधिमज्जने पटुतनून् देवेन्द्रमुख्यान् सुरान्मातस्त्वत्पदसेवने हि विमुखान् को मन्दधीः सेवते॥ ५॥
मातस्त्वत्पदपङ्कजद्वयरजोमुद्राङ्ककोटीरिणस्ते देवासुरसंगरे विजयिनो निःशङ्कमङ्के गताः।
देवोऽहं भुवने न मे सम इति स्पर्द्धां वहन्तः परेतत्तुल्या नियतं तथा चिरममी नाशं व्रजन्ति स्वयम्॥ ६॥
त्वन्नामस्मरणात् पलायनपरा द्रष्टुं च शक्ता न ते भूतप्रेतपिशाचराक्षसगणा यक्षाश्च नागाधिपाः।
दैत्या दानवपुङ्गवाश्च खचरा व्याघ्रादिका जन्तवोडाकिन्यः कुपितान्तकाश्च मनुजा मातः क्षणं भूतले॥ ७॥
लक्ष्मीः सिद्धगणाश्च पादुकमुखाः सिद्धास्तथा वारिणांस्तम्भश्चापि रणाङ्गणे गजघटास्तम्भस्तथा मोहनम्।
मातस्त्वत्पदसेवया खलु नृणां सिद्ध्यन्ति ते ते गुणाः कान्तिः कान्ततरा भवेच्च महती मूढोऽपि वाचस्पतिः॥ ८॥
ताराष्टकमिदं रम्यं भक्तिमान् यः पठेन्नरः। प्रातर्मध्याह्नकाले च सायाह्ने नियतः शुचिः॥ ९॥
लभते कवितां दिव्यां सर्वशास्त्रार्थविद् भवेत्। लक्ष्मीमनश्वरां प्राप्य भुक्त्वा भोगान् यथेप्सितान्॥ १०॥
कीर्ति कान्तिं च नैरुज्यं सर्वेषां प्रियतां व्रजेत्।विख्यातिं चैव लोकेषु प्राप्यान्ते मोक्षमाप्नुयात्॥ ११॥

।। श्रीमहोग्रताराष्टकस्तोत्रं सुसंपूर्णम्।।
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