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महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा समय सारणी और सब कुछ !

Myjyotish Expert Updated 24 Feb 2021 11:40 AM IST
Mahakaleshwar Jyotirling
Mahakaleshwar Jyotirling - फोटो : Myjyotish
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तीसरा सबसे महत्वपूर्ण ज्योतिर्लिंग यानी कि महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग । यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित है पुरानो,  महाभारत और कालिदास जैसे महाकाव्य की रचना में भी इस मंदिर का वर्णन मिलता है माना जाता है कि महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन मात्र से लोगों के दुखों का नाश होता है तथा उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है सभी महान कवियों आदि ने इस मंदिर की केवल प्रशंसा ही की है पुराने समय से यह भी माना जाता है कि उज्जयिनी का एक ही राजा है और वे हैं भूतभावन महाकालेश्वर। यही वजह है कि पुराने समय से ही कोई राजा उज्जैन में रात्रि विश्राम नहीं करता और ना ही राजा की तरह महाकालेश्वर के दर्शन करता है।

महाकालेश्वर मंदिर एक विशाल परिसर में स्थित है, जहां कई देवी-देवताओं के छोटे-बड़े मंदिर हैं। गर्भगृह में भगवान महाकालेश्वर का विशाल और विश्व का एकमात्र दक्षिणमुखी शिवलिंग है और इसकी जलाधारी पूर्व की तरफ है, जबकि दूसरे शिवलिंगों की जलाधारी उत्तर की तरफ होती है। साथ ही महाकालेश्वर मंदिर के शिखर के ठीक ऊपर से कर्क रेखा भी गुजरती है, इसलिए इसे पृथ्वी का नाभिस्थल भी माना जाता है।ज्योतिष और तंत्र-मंत्र की दृष्टि से भी महाकाल का विशेष महत्व माना गया है। साथ ही गर्भगृह में माता पार्वती, भगवान गणेश व कार्तिकेय की मनमोहक प्रतिमाएं हैं। महाकाल मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण है भोलेनाथ की भस्म आरती, जो प्रात: 4 से 6 बजे तक होती है।

कार्तिक पूर्णिमा, वैशाख पूर्णिमा एवं दशहरे पर यहां विशेष मेले लगते हैं। भगवान शिव के इस ज्योतिर्लिंग का श्रृंगार भस्म और भांग से किया जाता है। यहां की भस्मारती विश्व प्रसिद्ध है। इसे ‘महाकाल’ इसलिए कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहीं से संपूर्ण विश्व का मानक समय निर्धारित होता था जिस कारण इस ज्योतिर्लिंग का नाम ‘महाकालेश्वर’ रखा गया है।
 
पौराणिक कथा:

पुराणों के अनुसार, अवंतिका यानी उज्जैन भगवान शिव को बहुत प्रिय था। एक समय अवंतिका नगरी में एक ब्राह्मण रहता था। जिसके चार पुत्र थे। दूषण नाम के राक्षस ने अवंतिका में आतंक मचा दिया। वह राक्षस उस नगर के सभी वासियों को पीड़ा देना लगा। उस राक्षस के आतंक से बचने के लिए उस ब्राह्मण ने भगवान शिव की आराधना की। ब्राह्मण की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव धरती फाड़ कर महाकाल के रूप में यहां प्रकट हुए और राक्षस का वध करके नगर की रक्षा की। नगर के सभी भक्तों ने भगवान शिव से उसी स्थान पर हमेशा रहने की प्रार्थना की। भक्तों के प्रार्थना करने पर भगवान शिव अवंतिका में ही महाकाल ज्योतिर्लिंग के रूप में वहीं स्थापित हो गए।

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महाकालेश्वर मंदिर के कुछ खास नियम:
 
यहां के नियम अनुसार महिलाओं को आरती के समय घुंघट करना पड़ता है दरअसल महिलाएं इस आरती को नहीं देख सकती है इसके साथ ही आरती के समय पुजारी भी मात्र एक धोती में आरती करते हैं अन्य किसी भी प्रकार के वस्त्र को धारण करने की मनाही रहती है महाकाल की भस्म आरती के पीछे यह मान्यता भी है कि भगवान शिवजी संतान के साधक हैं इस कारण से भस्म को उनका श्रृंगार आभूषण माना जाता है इसके साथ ही ऐसी मान्यता है कि ज्योतिर्लिंग पर चढ़े भस्म को प्रसाद रूप में ग्रहण करने से रोक दूं  इसके साथ ही आरती के समय पुजारी भी मात्र एक धोती में आरती करते हैं अन्य किसी भी प्रकार के वस्त्र को धारण करने की मनाही रहती है महाकाल की भस्म आरती के पीछे एक यह मान्यता भी है कि भगवान शिव जी संतान के साधक हैं ।

इस कारण से भस्म को उनका श्रृंगार आभूषण माना जाता है इसके साथ ही ऐसी मान्यता है कि ज्योतिर्लिंग पर चढ़े भस्म को प्रसाद रूप में ग्रहण करने से रोग से दोष भी मुक्ति मिलती  है महाकाल के दर्शन करने के बाद जूना महाकाल के दर्शन करना जरूरी माना गया है। वर्तमान में जो महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है, वह 3 खंडों में विभाजित है। निचले खंड में महाकालेश्वर, मध्य खंड में ओंकारेश्वर तथा ऊपरी खंड में श्री नागचन्द्रेश्वर मंदिर स्थित है। नागचन्द्रेश्वर शिवलिंग के दर्शन साल में एक ही बार नागपंचमी के दिन ही होते हैं।गर्भगृह में भगवान महाकालेश्वर का विशाल दक्षिणमुखी शिवलिंग है। साथ ही माता पार्वती, भगवान गणेश व कार्तिकेय की प्रतिमाएं भी हैं। गर्भगृह में नंदी दीप स्थापित है, जो सदैव प्रज्वलित होता रहता है।

उज्जैन का एक ही राजा माना जाता है और वह है महाकाल बाबा। ऐसी मान्यता है कि विक्रमादित्य के शासन के बाद से यहां कोई भी राजा रात में नहीं रुक सकता। कहा जाता है कि जिसने भी यह दुस्साहस किया है, वह संकटों से घिरकर मारा गया।
 
समय सारणी महाकालेश्वर मंदिर की:

सुबह 4 से 6 बजे तक भस्म आरती, सुबह 7.30 से 8.15 बजे तक द्दयोदक तथा सुबह 10.30 बजे से भोग आरती होगी। शाम 5 बजे संध्या पूजन होगा। शाम 6.30 से शाम 7 बजे तक संध्या आरती होगी। रात्रि 10.30 से रात्रि 11 बजे तक शयन आरती होगी। इसके बाद मंदिर के पट बंद किए जाएंगे।

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