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मघा श्राद्ध के दौरान किए जाने वाले कार्य
मघा श्राद्ध के दिन भक्त जल्दी उठते हैं, हिंदू धर्म में, तर्पण सहित सभी श्राद्ध अनुष्ठान परिवार में पुरुष मुखिया द्वारा किए जाते हैं. मघा श्राद्ध पूजा से पूर्व अपने 'इष्ट देव' की पूजा करते हैं, इसके बाद पिंडादान किया जाता है. इस पूजा कार्य में, चावल, घी, गाय के दूध, शहद और चीनी से एक 'पिंड' बनाया जाता है और पूर्वजों को अर्पित किया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि पिंडदान पूजा पूरी श्रद्धा, भावना और मृत आत्मा के प्रति सम्मान के साथ की जानी चाहिए तभी उसका संपूर्ण फल प्राप्त होता है. तर्पण भी मघा श्राद्ध पर किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण कार्य है. पितरों को कुशा घास और काले तिल मिलाकर जल का भोग लगाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि मघा श्राद्ध के दिन तर्पण की रस्म पितरों को बहुत प्रसन्न करती है.
पूजा के समस्त कार्य रस्म पूरी करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है, माना जाता है कि उनके द्वारा खाया गया भोजन पूर्वजों को अप्रित होता है. ब्राह्मणों को वस्त्र और धन के रूप में 'दक्षिणा' भी अर्पित करनी चाहिए. मघा श्राद्ध में ब्राह्मणों के अलावा गाय, कौआ और कुत्ते को खिलाने का भी विधान है.
मघा श्राद्ध का महत्व
मत्स्य पुराण में मघा श्राद्ध सहित पितृ पक्ष श्राद्ध का महत्व बताया गया है. मघा श्राद्ध पितृ पक्ष के दौरान मनाया जाने वाला एक शुभ दिन होता है. यह विशेष दिन जब मघा नक्षत्र प्रबल होता है, यह बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि किंवदंतियों के अनुसार, मघा नक्षत्र पर 'पितरों' का प्रभाव होता है. ऐसा माना जाता है कि मघा पर तर्पण अनुष्ठान करने से पितरों की आत्मा प्रसन्न होती है और पुण्य भी प्राप्त होता है. इस पूजा के परिणामस्वरूप, पितरों को मुक्ति और शांति प्राप्त होती है. तर्पण और पिंडदान से संतुष्ट होने के बाद पितरों द्वारा आशीर्वाद प्राप्त होता है.
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