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Magh Ganesh Sankashti Chaturthi : गणेश चतुर्थी के दिन जरूर करें ये स्त्रोत पुर्ण होंगी सभी मनोकामनाएं.

Acharya Rajrani Sharma Updated 29 Jan 2024 09:53 AM IST
Ganesh chaturthi
Ganesh chaturthi - फोटो : my jyotish

खास बातें

Magh Ganesh Sankashti Chaturthi : गणेश चतुर्थी के दिन जरूर करें ये स्त्रोत पुर्ण होंगी सभी मनोकामनाएं. 

Ganesh Chaturthi 2024 हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. 
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Magh Ganesh Sankashti Chaturthi : गणेश चतुर्थी के दिन जरूर करें ये स्त्रोत पुर्ण होंगी सभी मनोकामनाएं. 

Ganesh Chaturthi 2024 हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन संकट चौथ का पूजन बेहद विशेष होता है. गणेश चतुर्थी के दिन किया गया स्त्रोत एवं पूजन काफी सकारात्मक प्रभाव देने वाला होता है. 

Ganesh Chaturthi in Magh month माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकष्टी चतुर्थी का पूजन समस्त प्रकार के फलों को देने वाला होता है. इस किया जाने वाला गणेश स्त्रोत संकट हरण करने वाला है. 

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गणेश चतुर्थी पर दूर होंगे सभी कष्ट 

माघ माह में आने वाली गणेश चतुर्थी का पर्व बेहद ही विशेष होता है. इस त्योहार को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. गणेश चतुर्थी को संकट चतुर्थी के रुप में पूजा जाता है. शास्त्रों के अनुसार प्रथम पूज्य श्री गणेश अपने भक्तों के विघ्नहर्ता भी हैं. अपने भक्तों के सभी कष्ट दूर कर देते हैं, इस दिन भक्त व्रत करते हुए समस्त प्रकार के नियमों का पालन करते हैं. भगवान गणेश जी को जिसके कारण उन्हें विघ्नहर्ता भी कहा जाता है. माघ का महीना अब शुरू हो चुका है. इस माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणपति जी का विशेष रुप से पूजन होता है. 
गणेश चतुर्थी पर कुछ खास उपाय करने से भक्तों की समस्त मनोकामना पूरी हो सकती हैं इसमें से गणेश स्त्रोत विशेष उपाय माना गया है. 
 

श्री गणेश अथर्वशीर्ष स्तोत्र का पाठ (Ganpati Atharvashirsha Path)

गणपति अथर्वशीर्ष पाठ विशेष कल्याणकारी है अत: सकट चतुर्थी के दिन शुद्ध चित्त मन से गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करने से गणेश जी की कृपा अवश्य प्राप्त होगी. इस स्त्रोत का पाठ एक दिन में 11 बार करने से आपकी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी तथा कार्यों में आपको सफलता मिलेगी. 

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।।श्री गणेश अथर्वशीर्ष स्तोत्र ।।

ॐ नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि
त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।।

ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।।

अव त्व मां। अव वक्तारं।
अव श्रोतारं। अव दातारं।
अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं।
अव पश्चातात। अव पुरस्तात।
अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्।
अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।।
सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात्।।3।।

त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मय:।
त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:।
त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।4।।

सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:।
त्वं चत्वारिवाक्पदानि।।5।।

त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं
रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं
ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।।

गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।
अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं।
तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं।
गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं।
नाद: संधानं। सं हितासंधि:
सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि:
निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता।
ॐ गं गणपतये नम:।।7।।

एकदंताय विद्महे।
वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।।
एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्।
रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्।
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।।
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृते पुरुषात्परम्।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।

नमो व्रातपतये। नमो गणपतये।
नम: प्रमथपतये।
नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय।
विघ्ननाशिने शिवसुताय।
श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।

एतदथर्वशीर्ष योऽधीते।
स ब्रह्मभूयाय कल्पते।
स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते।
स सर्वत: सुखमेधते।
स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।।11।।

सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।
सायंप्रात: प्रयुंजानोऽपापो भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।
धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति।।12।।

इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्।
यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति।
सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्।13।।

अनेन गणपतिमभिषिंचति
स वाग्मी भवति
चतुर्थ्यामनश्र्नन जपति
स विद्यावान भवति।
इत्यथर्वणवाक्यं।
ब्रह्माद्यावरणं विद्यात्
न बिभेति कदाचनेति।।14।।

यो दूर्वांकुरैंर्यजति
स वैश्रवणोपमो भवति।
यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति
स मेधावान भवति।
यो मोदकसहस्रेण यजति
स वाञ्छित फलमवाप्रोति।
य: साज्यसमिद्भिर्यजति
स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।।

अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा
सूर्यवर्चस्वी भवति।
सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ
वा जप्त्वा सिद्धमंत्रों भवति।
महाविघ्नात्प्रमुच्यते।
महादोषात्प्रमुच्यते।
महापापात् प्रमुच्यते।
स सर्वविद्भवति से सर्वविद्भवति।
य एवं वेद इत्युपनिषद्।।16।।

गणपति स्त्रोत संपूर्णम।।
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