आज यानी 2 जुलाई दिन शुक्रवार आषाढ़ मास की शीतली अष्टमी है। इस अष्टमी को देश में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आज के दिन शीतला अष्टमी का व्रत भी रखा जाता है। मान्यताओं के मुताबिक मां शीतला को दुर्गा माता का ही एक अवतार माना जाता है। माता सीता आरोग्य की देवी मानी जाती है और यह शीतलता प्रदान करती हैं। आज के दिन माता शीतला की विधि-विधान के साथ पूजा करने से सुख-समृद्धि का फल प्राप्त होता है। पंचांग के अनुसार शीतला अष्टमी को बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है। कहते है कि माता शीतला को व्यक्ति के भीतर छिपे रोगों का नाश करती है।
तो आइए जानते है माता की पूजा विधि और महत्व के बारे में...
माता शीतला को चढ़ता है बासी भोग
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आज के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है। इसलिए दिन पहले ही भोजन बनाकर रख लिया जाता है। आज के दिन घर के महिलाएं सुबह जल्दी उठकर माता शीतला की पूजा करती है और फिर मां को घर में बने बासी भोजन से भोग लगाया जाता है और फिर घर के बाकी सदस्य बासी भोजन खाते हैं। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार आज के दिन घर के सदस्य ताजे और गर्म पानी से स्नान नहीं करते हैं।
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माता शीतला की पूजा विधि
आज के दिन सुबह जल्दी उठकर पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान आदि करें और फिर नारंगी रंग के साफ-सुथरे कपड़ों को पहने और फिर मां की पूजा के लिए दो थालियां सजाएं। एक थाली में दही, रोटी, पुआ, बाजार, नमक पारे, मठरी और सतमी के दिन बनी मीठे चावल को रखें और फिर दूसरी थाली में आटे का दीपक, रोली, वस्त्र अक्षत, सिक्का और मेहंदी और एक ठंडे पानी से भरा लोटा भी रखें। पूजा करने के बाद मां के समक्ष दीपक को जला रहने दें, भोग लगाएं और फिर जल को नीम के पेड़ को चढ़ाएं।
शीतला अष्टमी का महत्व
स्कंद पुराण के अनुसार माता शीतला के स्वरूप को भक्तों के लिए शीतला प्रदान करने के लिए माना जाता है। कहते है कि आज के दिन सच्चे मन से पूजा और व्रत रखने से व्यक्ति के अंदर के रोगों के साथ कष्टों से भी मुक्ति मिलती हैं और साथ ही समाज में मान-सम्मान प्राप्त होता है। शीतला अष्टमी के दिन मां शीतला का जाप करने से व्यक्ति को बीमारियों से जल्दी ही मुक्ति मिलती है। विशेष तौर पर चेचक संबंधी रोग से।
मां का पौराणिक मंत्र 'हृं श्रीं शीतलायै नमः' ।।
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