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Kurma Dwadashi 2024: कूर्म द्वादशी के दिन होती है भगवान श्री विष्णु के कूर्म स्वरुप की पूजा

Acharya Rajrani Sharma Updated 22 Jan 2024 11:31 AM IST
Kurma Dwadashi 2024:
Kurma Dwadashi 2024: - फोटो : google

खास बातें

Kurma Dwadashi 2024: कूर्म द्वादशी के दिन होती है भगवान श्री विष्णु के कूर्म स्वरुप की पूजा

Kurma Dwadashi Vrat : कूर्म द्वादशी का समय भगवान श्री विष्णु के कूर्म अवतार की पूजा विशेष होती है. इस दिन भगवान के पूजन से दूर होते हैं भक्तों के कष्ट.
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Kurma Dwadashi 2024: कूर्म द्वादशी के दिन होती है भगवान श्री विष्णु के कूर्म स्वरुप की पूजा

Kurma Dwadashi Vrat : कूर्म द्वादशी का समय भगवान श्री विष्णु के कूर्म अवतार की पूजा विशेष होती है. इस दिन भगवान के पूजन से दूर होते हैं भक्तों के कष्ट.

Kurma Dwadashi Vrat Puja कूर्म द्वादशी पूजा में भक्त भगवान श्री हरि का पूजन करते हैं तथा इस दिन किया जाने वाला व्रत पूजन जीवन में मोक्ष एवं सुखों को प्रदान करने वाला होता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने इस समय लिया था कछुए का अवतार.

इस शुभ दिन भगवान विष्णु की पूजा करते हुए इस व्रत को करने का संकल्प ले सकते हैं. श्री विष्णु स्वरूप कूर्म की पूजा की जाती है. कूर्म द्वादशी का व्रत विधि-विधान से करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस पूजा में भगवान विष्णु की जल, फल, फूल, नैवेद्य, अक्षत, धूप, दीप, चंदन आदि का उपयोग शुभ माना जाता है. भगवान की आरती करना मंत्र जाप करना तथा भगवान को भोग अर्पित करना विशेष होता है.

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भगवान ने लिया कच्छप अवतार Lord Vishnu took the incarnation of 'Kurma'

कूर्म द्वादशी का पर्व पौष मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी के दिन मनाया जाने वाला समय है. Lord Vishnu took the incarnation of 'Kurma' or 'Kachhapa' on Kurma Dwadashi. भगवान विष्णु ने विश्व कल्याण और धर्म की रक्षा के उद्देश्य से कूर्म अवतार लिया था. . इस रूप के अवतार लेने का कारण समुद्र मंथन की कथा है. उस समय देवताओं और राक्षसों के हाथों हो रहे समुद्र मंथन में मदद करना था. इस समय पर कुर्म रुप लेकर पृथ्वी को संभाला. माना जाता है कि जो भी प्रभु के इस अवतार की भक्ति-भक्ति से पूजा करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. यह श्री हरि का द्वितीय अवतार कहा गया है. इन का दूसरा अवतार सृष्टि के कल्याण एव्म उसकी शुभता का प्रतिक रहा है. इस अवतार में भगवान श्री हरि कछुए के रूप में प्रकट हुए थे, इसलिए इसे कच्छप अवतार और कूर्म अवतार भी कहा जाता है
 

पौराणिक कथाओं और मान्यताएं Mythology and beliefs

विष्णु पुराण के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने कूर्म यानि कछुए का अवतार लिया था. जिसके कारण यह द्वादशी भगवान विष्णु के कूर्म रूप को समर्पित है. इस कूर्म व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर लेना चाहिए. इस समय पर शुद्ध चरित्र के साथ साधना करनी चाहिए. भगवान सत्यनारायण को पीपल और तुलसी के पेड़ पर जल चढ़ाया जाता है. भगवान विष्णु की पूजा करते हुए इस व्रत को करने का संकल्प ले सकते हैं. आज विष्णु स्वरूप कूर्म की पूजा की जाती है. कूर्म द्वादशी का व्रत विधि-विधान से करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस पूजा में भगवान विष्णु की जल, फल, फूल, नैवेद्य, अक्षत, धूप, दीप, चंदन आदि का उपयोग शुभ माना जाता है. भगवान की आरती करना मंत्र जाप करना तथा भगवान को भोग अर्पित करना विशेष होता है.

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कूर्म द्वादशी कथा Kurma Dwadashi katha

समुद्र मंथन के समय जब कुछ ही समय बाद मंदराचल पर्वत धीरे-धीरे समुद्र में डूबने लगा, जिसके कारण देवताओं और राक्षसों ने मंथन रोक दिया. सभी देवताओं और दानवों ने भगवान विष्णु से इस समस्या का समाधान पूछा और कहा, हे प्रभु, अब आप ही कुछ करें. उसके बाद भगवान विष्णु ने कूर्म का रूप धारण किया. मंदराचल पर्वत के नीचे स्थित हो गये. तब उसकी पीठ पर फिर से समुद्र मंथन शुरू हुआ और इसी तरह धीरे-धीरे बहुमूल्य वस्तुएं और बहुमूल्य रत्न निकले और अनेक प्रकार के जीव-जंतु आदि अस्तित्व में आए. इसके बाद ही देवताओं को अमृत मिला, जिसे पीकर देवताओं ने अपनी शक्ति पुनः प्राप्त कर ली.
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