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Kokila Vrat 2023: कब और किस कामना से रखा जाता है कोकिला व्रत, जानें इसका महत्व

my jyotish expert Updated 30 Aug 2023 01:02 PM IST
Kokila Vrat 2023: कब और किस कामना से रखा जाता है कोकिला व्रत, जानें इसका महत्व
Kokila Vrat 2023: कब और किस कामना से रखा जाता है कोकिला व्रत, जानें इसका महत्व - फोटो : my jyotish
लोक परंपराओं से जुड़ा कोकिला व्रत दांपत्य जीवन की सुख समृद्धि हेतु किया जाता है. धर्म शास्त्रों की मान्यता अनुसर यह व्रत देवी पार्वती द्वारा भगवान शिव को पाने हेतु किया गया था. इस व्रत का प्रभाव सौभाग्य का सुख प्रदान करता है. इस व्रत को पूर्णिमा तिथि के दोरान किया जाता है. कोकिला व्रत विवाहित एवं कुंवारी लड़कियां सभी कर सकती है. कोकिला व्रत रखकर भक्त जीवन साथी का सुख पाते हैं. महादेव और माता सती से भगवान शिव जैसा पति पाने की प्रार्थना हेतु यह व्रत सुख को प्रदान करता है. मनोवांधित वर पाने के लिए इस व्रत को किया जाता है. इस व्रत को करने हेतु भक्त को सच्चे मन से व्रत का संकल्प लेते हुए इसे करना चाहिए. 

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कोकिला पूजा और व्रत करने से मनोकामनाएं होती हैं पूर्ण 
हिंदू धर्म में पूर्णिमा का बहुत महत्व है. इस दिन गुरु पूर्णिमा और देवी लक्ष्मी और भगवान नारायण की पूजा के साथ-साथ कोकिला व्रत भी रखा जाता है. वैसे यह व्रत आषाढ़ मास पुर्णिमा और सावन की पूर्णिमा पर विशेष रुप से किया जाता है. विवाहित महिलाएं सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के लिए कोकिला व्रत रखा जाता है और वहीं कुंवारी लड़कियां अपने मनोकूल इच्छित वर हेतु यह व्रत रखती हैं. इस दिन लड़कियां महादेव और माता सती से भगवान शिव जैसा पति पाने की प्रार्थना करती हैं.  
  
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कोकिला व्रत से हुआ महादेव का पार्वती से मिलन 
धार्मिक मान्यता के अनुसार, माता सती ने महादेव को पति के रूप में पाने के लिए बहुत प्रयास किए. उन्होंने कोकिला व्रत भी किया था अत: इस व्रत को करने से उन्हें भगवान शिव पति के रूप में प्राप्त हुए. कथाओं के अनुसार माता सती राजा दक्ष की पुत्री थीं. राजा दक्ष को भगवान शिव बिल्कुल पसंद नहीं थे. जब माता सती ने अपने पिता से शिव से विवाह करने की बात कही तो वे इसके लिए तैयार नहीं थे. लेकिन सती ने हठ करके शिव शंकर से ही विवाह किया. इससे क्रोधित होकर राजा दक्ष ने पुत्री सती से सारे रिश्ते तोड़ दिये. एक बार राजा दक्ष ने बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उसमें बेटी और दामाद को नहीं बुलाया इससे क्रोधित होकर सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर योग अग्नि में समाहित होती हैं. इसके बाद माता सती कई हजार वर्षों तक कोयल बनकर जंगल में रहना पड़ा. इस दौरान उन्होंने कोयल के रूप में भोलेनाथ की पूजा की. जिसके बाद उन्होंने पर्वतराज हिमालय के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और उन्हें एक बार फिर से पति के रूप में प्राप्त किया.
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