माँ का ध्यान करना न केवल धरती परन्तु परलोक तक कल्याणकारी और शांति प्रदान करने वाला है। देवी चंद्रघंटा के मस्तिष्क पर घंटे के आकर का आधा चंद्र बना हुआ है। इसी कारण देवी का चंद्रघंटा कहलाता है। माँ का शरीर स्वर्ण सामान चमकीला और सुन्दर है। यह दस भुजाओं वाली हैं, इन्होने अपने हाथों में अनंत प्रकार के अस्त्र -शस्त्र को विभूषित किया हुआ है। माँ सिंह पर सवार रहती हैं जो की सदैव युद्ध पर जाने के लिए तैयार मुद्रा के समान लगती है।
नवरात्रों में माता चिंतपुर्णी में कराएं दुर्गा सप्तशती का पाठ मां हरेंगी हर चिंता
माँ चंद्रघंटा की आराधना से भक्तों में वीरता और निर्भयता के साथ-साथ सौम्यता और विनम्रता का भी विकास होता है। कहा जाता है की माँ की आराधना के समय घंटी की भयमय आवाज से खतरनाक दानव - दैत्य और राक्षस काँप उठते हैं। किसी भी विकट परिस्थिति में जातकों को सावधानी से रहना चाहिए। परेशान हुए भी बिना भी बड़ी से बड़ी मुसीबतों का हल निकाला जा सकता है।
माँ चंद्रघंटा की उपासना के लिए हमें मन, वचन और कर्म के साथ ही काया को विधि-विधान के अनुसार परिशुद्ध करना चाहिए। इससे हमारे जीवन के सभी कष्टों का नाश होता है व हम सदैव माँ के कृपा के आसरे में खुश तथा सुरक्षित रहते हैं। किसी भी पूजा को संपन्न करने के लिए व्यक्ति के सभी कार्यों से पहले उसका मन अतिशुद्ध होना चाहिए। इससे वह देवी से शीघ्र रूप से जुड़ पाता है तथा उसकी सभी इच्छाएं भी पूर्ण होती हैं।