पौराणिक कथाओं के अनुसार , स्वर्ग की सत्ता के लिए जब भयंकर युद्ध छिड़ा था तब दोनों ओर से ही सृष्टि संहारक हथियारों का प्रयोग हुआ था । जिससे त्रिलोक में हाहाकार मच गया था । वहा हर कोई इस युद्ध को टालने के लिए कई प्रयासों को अपनाने लगा । वही गुरु शुक्राचार्य की अगुवाई में मौजूद देवताओं के सहार करने में जुटे दैत्यों का कहना था कि देवताओं के सौतेले भाई होने के चलते इस इंदरलोक पर इंद्र और देवताओं की तरह उनका भी इस पर बराबर का हक है । लेकिन इंद्रदेव उन्हें स्वर्ग की सत्ता के लायक ना समझ कर पाताल लोक में ही दबाए रखने के लिए संहार करते थे ।
इसी बीच त्रिदेवों ब्रह्मा , विष्णु और महेश ने तय पाया कि स्वर्ग ही नहीं बल्कि धरती और पाताल लोक पर ऐसे वाद - विवादों में न्याय पूर्ण निपटारा करने के लिए उन्हें एक अलग शक्ति की आवश्यकता पढ़ रही है । इस बीच उन्होंने तय किया , कि वह महिमा एक ऐसी शक्ति का मालिक हो जिसका ना कोई अपना हो और ना ही पराया । वह धर्म सत्य का प्रसाद तो अन्याय , व पाप और प्रताड़ना के लिए भरपूर सजा भी दे । ऐसे में जरूरी है कि वह महिमा अपने आप की शक्ति में बेहद ही तेजवान और शक्तिशाली हो ।
अब ऐसी विकट परिस्थिति में इस शक्ति का उदय मानव रूप में कैसे हो ? इस सवाल का जवाब भगवान शिव के सुझाव में मिलता हैं । वह बोलते हैं कि ऐसी शक्ति का निर्माण सूर्य देव के घर में ही होना चाहिए क्योंकि सामान्य रूप से बिना किसी भेदभाव के सभी को रोशन करने वाला सूर्य देव के अंश के तौर पर उस न्याय अधिकारी को सही स्वरूप मिल सकता है ।
तो कुछ इस तरह से शनि महाराज का जन्म सूर्य देव के पुत्र के तौर पर हुआ था । लेकिन अपने तेजहीन और सांवले चेहरे के चलते उन्हें पिता का ही कोपभाजन सहना पड़ा जिन्होंने उनका ना सिर्फ परित्याग किया बल्कि जान से मारने का प्रयास भी किया था ।
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छलक पड़े थे श्रीहरि के आंसू : -
न्याय अधिकारी शनि महाराज की उत्पत्ति के बाद उनके कर्मदशाओ को देखकर श्रीहरि भगवान विष्णु जी के आंखों में आंसू आ गए थे । उन्होंने भविष्य की कामना करते हुए कहा था कि दूसरों को न्याय दिलाने वाले शनि देव को बचपन में ही परित्याग पर अन्याय का सामना करना पड़ेगा ।
कैसे मिला शनि महाराज को नौ ग्रहों के स्वामी का वरदान ;
शनि महाराज के वर्ण को देखकर सूर्य देव ने अपनी पत्नी छाया पर संदेह किया था और कहा था कि शनि महाराज उनके पुत्र नहीं हो सकते । जिसके चलते शनि महाराज के मन में अपने पिता सूर्य देव के प्रति शत्रुवत भाव पैदा हो गया । इसके बाद शनि महाराज ने भगवान शिव की कड़ी तपस्या की व भगवान शिव शनि महाराज की कड़ी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मांगने को कहा । जिसमें शनि महाराज कहते हैं कि वह अपनी माता का प्रताड़ित और अनादर सूर्य देव के हाथों नहीं देख सकते जिससे उनकी मां को हमेशा अपमानित होना पड़ता है । इसके चलते उन्हें सूर्यदेव से अधिक शक्ति और पूजनीय होने का वरदान मांगा । जिस पर भगवान शिव ने शनि महाराज को वरदान दिया कि वह नौ ग्रहों के स्वामी होंगे जिसे सबसे श्रेष्ठ स्थान माना जाता है ।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि ग्रह की दूरी ;
ज्योतिष ज्ञान के अनुसार शनि की धरती से दूरी लगभग 9 करोड मील है और इसकी चौड़ाई 1 अरब 42 करोड़ 60 लाख किलोमीटर है । जिसका बल धरती से पंचानवे गुना अधिक है । शनि को सूर्य की परिक्रमा करने में 19 साल लग जाते हैं ।
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