Karak Chaturthi
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करक चतुर्थी को कई रुपों में मनाया जाता है उत्तर भारत में ज्यादातर भारतीय हिंदू विवाहित महिलाओं द्वारा बड़े पैमाने पर मनाया जाता है.वहीं इस दिन श्री गणेश पूजा भी की जाती है. यह व्रत अविवाहित कन्याएं भी कर सकती है. इस दिन को स्त्री पुरुष सभी भक्ति भाव के साथ मनाते हैं. करक चतुर्थी के दिन पूरे दिन उपवास रखने का विधान है. करक चतुर्थी का व्रत बहुत महत्व है. इस शुभ दिन को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. करक चतुर्थी के दौरान महिलाएं अपने पति की सुख-समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. इसके अलावा यह व्रत सुख समृद्धि के लिए भी रखा जाता है. करक चतुर्थी में भगवान गणेश, देवी पार्वती, भगवान शिव तथा कार्तिकेय की पूजा करने की परंपरा है. इसके साथ ही इस दिन चंद्रमा को देखने के बाद यह व्रत खोला जाता है.
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करक चतुर्थी पूजा अनुष्ठान और महत्व
करक चतुर्थी का त्यौहार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन मनाया जाता है. करक चतुर्थी के इस शुभ अवसर पर व्रत एवं पूजन द्वारा शुभ फलों को पाया जाता है. करक चतुर्थी की पूजा भी पूरे विधि-विधान से की जाती है. इस दिन कई रुपों में व्रत का पालन किया जाता है. चतुर्थी को ब्रह्म काल से यह व्रत रखा जाता है इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए, इसके बाद साफ कपड़े पहनकर मंदिर में दीपक जलाना चाहिए.
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इसके बाद भगवान को नमन करना चाहिए. इस दौरान श्री विष्णु, तुलसी, भगवान शिव देवी पार्वती एवं भगवान गणेश की पूजा करना शुभदायक होता है. पूजन के साथ ही व्रत रखने का संकल्प लेना चाहिए. इनके साथ ही पूजा करनी चाहिए. व्रत के दौरान रात में चंद्रोदय के बाद नक्षत्रों एवं चंद्रमा की पूजा की जाती है. पूजा की समाप्ति के बाद भगवान से अपने जीवन के सुखों हेतु प्रार्थना करनी चाहिए तथा व्रत को संपूर्ण करना चाहिए.
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करक चतुर्थी पूजा में सभी प्रकार की चीजों का ध्यान रखते हुए पूजा करते हैं. इस दिन मिट्टी का बर्तन बहुत महत्वपूर्ण होता है. इसके साथ ही पूजा के लिए सिन्दूर, चंदन, अक्षत, रोली, फल-फूल और भोग को रखते हैं. पूजा की थाली में समस्त चीजों को रख कर पूजा करनी चाहिए. भगवान को भोग लगवाने के लिए पूरी, हलवा तथा मोदक का उपयोग जरुर करना चाहिए. गौरी-गणेश की मूर्ति का पूजन करते हुए पूजा संपन्न होती है.