Kalank Chaturthi
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भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी को कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है. इस दिन को चंद्रमा के दर्शन करने से बचना चाहिए क्योंकि इस दिन चंद्रमा को देखने भर से ही व्यक्ति पर कलंक लगने दोष भी झेलना पड़ता है. मान्यताओं के अनुसार इस दिन दर्शन मात्र से झूठा आरोप लग सकता है,
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भगवान श्री कृष्ण ने भी इसी दिन चंद्रमा के दर्शन किए थे और इस कारण उन पर रत्न चोरी का आरोप लगा था. उदया तिथि के अनुसार गणेश चतुर्थी 19 सितंबर को मनाई जाएगी.
कलंक चतुर्थी पूजा शुभ समय
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 18 सितंबर को दोपहर 12:39 बजे शुरू होगी और 19 सितंबर को दोपहर 01:43 बजे तक रहने वाली है. ऐसे में गणेश चतुर्थी का त्योहार 19 सितंबर को मनाया जाएगा. 19 सितंबर को गणपति जी की स्थापना का शुभ समय सुबह 10:50 बजे से 12:52 बजे तक है, सबसे शुभ समय 12:52 बजे से 02:56 बजे तक रहने वाला है.
अगर गलती से चंद्रमा दिख जाए तो मंत्र का जाप करना चाहिए. मंत्र का जाप करने से आपके सभी दोष दूर हो जाते हैं “ सिंह प्रसेनमवधितसिंघो जाम्बवता हतः सुकुमारक मरोदिस्तव ह्येष स्यमन्तक:॥”
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कलंक चतुर्थी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार गणेश जी का पेट और गजमुख रूप देखकर चंद्रमा हंस पड़े, जिस पर गणेश जी क्रोधित हो गये. इसके बाद उन्होंने चंद्रमा को श्राप दे दिया. उन्होंने चंद्रमा से कहा कि तुम्हें अपने रूप पर बहुत घमंड है, इसलिए अब यदि कोई तुम्हें देख लेगा तो उसे कलंक लगेगा.
कहा जाता है कि इस श्राप के कारण चंद्रमा का आकार धीरे-धीरे कम होने लगा. चंद्रमा ने श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की आराधना की. भगवान शिव ने चंद्रमा को भगवान गणेश की पूजा करने की सलाह दी.
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तब गणेश जी ने कहा कि मेरे श्राप का प्रभाव तो ख़त्म नहीं होगा, लेकिन मैं इसका प्रभाव कम कर दूंगा. इससे आप 15 दिन तक क्षयग्रस्त हो जायेंगे परन्तु फिर बड़े होकर पूर्ण रूप प्राप्त कर लेंगे. साथ ही भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन जो कोई तुम्हें देखेगा उसे कलंक लगेगा. ऐसा कहा जाता है कि तब से भाद्रपद मास की चतुर्थी को चंद्रमा नहीं दिखता है और तभी से इसे कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है. इस दिन भगवान श्री गणेश का पूजन करने से जीवन के दोष दूर हो जाते हैं तथा सुखों की प्राप्ति होती है.