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कब मानी जाएती है कजरी तीज
भाद्रपद माह के कृष्ण की तृतीया तिथि को कजरी तीज का उत्सव मनाया जाता है. यह व्रत देवी पार्वती की पूजा से संबंधित होता है तथा इसी के साथ इस व्रत को करने से जीवन में आने वाले संकटों से मुक्ति प्राप्त होती है. जीवन में व्यक्ति अपने लिए एक योग्य साथी को पाता है. जिसे वैवाहिक जीवन की आधारशीला हेतु विशेष माना गया है
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कजरी तीज पूजा विधि और महत्व
कजरी तीज का व्रत हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है. यह सुहाग पर्व विवाहित महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है. जहां विवाहित महिलाएं इस उत्सव को बड़े जोश के साथ मनाती हैं उसी तरह कुंआरी लड़कियां अपने जीवन में अच्छा वर पाने के लिए यह व्रत रखती हैं. कजरी तीज की पूजा जीवन में सुख को प्रदान करने वाली होती है.
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कजरी तीज को कजली तीज, सातुड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है, इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करके व्रत का संकल्प लेकर इसका आरंभ किया जाता है. शुभ मुहूर्त में पूजा करने से पहले दीवारपर मिट्टी या गाय के गोबर से एक तालाब जैसी आकृति बनाते हुए उस पर नीम की टहनी लगाई जाती है. पूजा स्थान पर देवी पार्वती एवं भगवान शिव, तीज माता का चित्र स्थापित करते हैं. इन सभी की विधिवत पूजा करते हैं.