जानें क्यों रखा भीम ने निर्जला एकादशी का व्रत, जानिए कथा
वर्ष भर में आने वाली सभी एकादशियों का अपना अलग अलग महत्व रहता है किंतु इनमें से ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष समय पर आने वाली एकादशी अत्यंत विशिष्ट मानी जाती है. इस एकादशी के दिन किया जाने वाला जप, व्रत, दान इत्यादि कार्य कई गुना होकर शुभता के फल प्रदान करते हैं.
एकादशी का वर्ष की सभी एकादशियों में महत्व इस कारण भी है क्योंकि इस समय पर भीन ने भी निर्जला व्रत को अपनाया था और इस कारण इसे निर्जला पांडव और भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु का व्रत रखा जाता है तथा मान्यता है की इस एकादशी का व्रत करने से जन्म जन्म के पाओं की शांति भी होती है ओर मोक्ष प्राप्ति का मार्ग सुलभ होता है.
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महर्षि वेद व्यास जी ने भीम को बताया निर्जला एकादशी का रहस्य
महाभारत काल की एक प्रचलित कथ का आधार कुंती पुत्र भीम से संबंधित रहा है. भीम जिन्हें अत्यंत ही भूख लगती थी ओर उनके लिए भूखे रहना असंभव कार्य रहता है उन्होंने ने इस व्रत को धारण करके उस अमूल्य वरदान को प्राप्त कर लिया जिसे देवता भी प्राप्त कर पाने में असमर्थ होते हैं. कथा इस प्रकार है कि एक बार व्रत के संदर्भ में जब भीम ने महर्षि वेद व्यास प्रश्न किया की हे महर्षि मेरे लिए भूखे रहना दुष्कर है ओर मै अपनी क्षुद्धा को नियंत्रित नहीं कर पाता हूंऎसे में मुझे किस प्रकार से व्रत एवं पूजा का संपूर्ण लाभ प्राप्त हो सकता है. मेरे जीवन में व्रत कर पाना अत्यंत ही कठिन कार्य रहा है तो कृपा आप मुझे कोई ऎसा उपाय बताएं जिसके द्वारा मैं जीवन में व्रत से संब्म्धित सभी पुण्य फलों को प्राप्त कर पाउं, भोजन के बिना एक दिन भी नहीं रह सकता, इस कारण मुझे एकादशी व्रत का पुण्य भी नहीं प्राप्त हो पाएगा कृपा मेरी शंका का समाधान कीजिए. भीम के प्रश्न को सुन कर महर्षि वेद व्यास जी ने उन्हें ज्येष्ठ मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी के व्रत और उसके महत्व को बताया जिसके द्वारा वह अपनी पूजा का संपूर्ण फल प्राप्त कर पाने में सफल रह सकते हैं.
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शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी के बारे में जान कर भीम अत्यंत हर्षित होते हैं ओर वह निर्णय करते हैं की इस व्रत को वह अवश्य पूर्ण करेंगे जिसके द्वारा इस एक व्रत से उन्हें वर्ष की सभी एकादशियों का फल तो प्राप्त होगा ही साथ ही अन्य पूजा कर्म का भी शुभ फल वह प्राप्त कर पाने में सफल रहेंगे. ऎसे में जेष्ठ माह के आने पर शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन भीम ने इस निर्जला एकादशी का व्रत अपने मनोबल एवं तप द्वारा संपुर्ण किया ओर उन्हें इसका संपुर्ण शुभ फल प्राप्त हुआ ऎसे में इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी के नाम से भी पुकारा जाने लगा. इस एकादशी तिथि के समय पर जल पिए बिना तथा अन्न ग्रहण किए बिना जो भी इस व्रत को करता है वह वर्ष भर में आने वाली एकादशियों का शुभ फल प्राप्त कर पाने में सफल होता है.
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